इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां एक तरह से ठेकेदारों जैसा ही काम करती हैं। लेकिन ठेकेदार की छवि हमारे दिमाग में नेताओं तक पहुंच और सरकारी धन की लूट करनेवाले गुंडे-मवाली की ही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुख्यात माफिया हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही मूलतः ठेकेदार ही तो रहे थे। पर, इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां एकदम भिन्न व प्रोफेशनल तरीके से काम करती हैं। देश में जिस तरह इंफ्रास्ट्रक्चर की खस्ता हालत को लेकर त्राहि-त्राहि मची है, उसमें इस क्षेत्र की कंपनियों को बढ़ना ही बढ़ना है। हालांकि शेयर बाजार भी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों को खास भाव नहीं दे रहा है और उनका धंधा भी दबाव में है। लेकिन सुप्रीम इंफ्रास्ट्रक्चर इंडिया लिमिटेड देश की उन गिनी-चुनी लिस्टेड कंपनियों में जिसका धंधा चकाचक है और शेयर में भी काफी संभावना है।
कंपनी कल 12 अगस्त को चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के नतीजे घोषित करने जा रही हैं। उम्मीद अच्छे की ही है। इससे पहले मार्च 2011 की तिमाही में उसकी आय 88 फीसदी बढ़कर 174.30 करोड़ रुपए से 328 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 148 फीसदी बढ़कर 11 करोड़ से 27.40 करोड़ रुपए हो गया था। पूरे वित्त वर्ष 2010-11 की बात करें तो कंपनी की कुल आय साल भर पहले के 534.10 करोड़ रुपए से 72 फीसदी बढ़कर 918.70 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 39.20 करोड़ रुपए से 91 फीसदी बढ़कर 74.80 करोड़ रुपए हो गया था। लेकिन उसका शेयर (बीएसई – 532904, एनएसई – SUPREMEINF) इस वेग से नहीं बढ़ा।
इस साल 28 फरवरी को 178 रुपए की तहलटी पकड़ने के बाद अब तक वह 46.77 फीसदी बढ़कर कल 10 अगस्त को बीएसई में 261.25 रुपए पर बंद हुआ है। वित्तीय रूप से देखें तो इस स्टॉक में बढ़त की काफी संभावना है। इसकी प्रति शेयर बुक वैल्यू 154.22 रुपए है, यानी बाजार भाव इसका 1.69 गुना है। स्टैंड-एलोन रूप से उसका सालाना ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 42.80 रुपए है। इस तरह उसका शेयर महज 6.1 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। यह शेयर साल भर पहले अगस्त 2010 में 14.52 के पी/ई अनुपात पर जा चुका है। वही भाव मिल जाए तो इसे 621.5 रुपए पर पहुंच जाना चाहिए। लेकिन इस तरह की गणनाएं न तो जिंदगी और न ही शेयर बाजार में चलती हैं। हां, उस वक्त 20 अगस्त 2010 को यह शेयर 319.80 रुपए तक गया था। इसलिए वहां तक यानी, करीब 22 फीसदी रिटर्न की उम्मीद इससे साल भर में की जा सकती है।
1983 में बनी कंपनी है। भवानी शंकर शर्मा इसके मुख्य प्रवर्तक हैं। पहले नाम सुप्रीम अस्फाल्ट्स प्रा. लिमिटेड था। 2002 से नाम बदलकर सुप्रीम इंफ्रास्ट्रक्चर इंडिया लिमिटेड किया गया है। कंपनी इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े सात प्रमुख क्षेत्रों – रेलवे, पुल, बिल्डिंग, बिजली, सीवरेज, सिंचाई व सड़कों के निर्माण में सक्रिय है। कंपनी ने शुरुआत महाराष्ट्र में मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और पीडब्ल्यूडी के ऑर्डरों से की थी। लेकिन अब तमाम शहरों ही नहीं, तमाम राज्यों तक पहुंच गई है। वैसे, अब भी इसको करीब 76 फीसदी ऑर्डर महाराष्ट्र से ही मिलते हैं। लेकिन यह हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल तक पैठ बना चुकी है।
कंपनी के कंस्ट्रक्शन बिजनेस की खासियत यह है कि डामर से लेकर रेडी-मिक्स कांक्रीट, क्रशर और वेट-मिक्स प्लांट वगैरह खुद उसका होता है। इसलिए एक तो उसे समय पर काम पूरा करने में आसानी हो जाती है, दूसरे वह कई तरह के टैक्स व शुल्क और लागत बचा लेती है। उसका औसत परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 17 फीसदी और इक्विटी/नेटवर्थ पर रिटर्न 29 फीसदी है। पिछली पांच तिमाहियों में कंपनी की आय 59 फीसदी और परिचालन लाभ 56 फीसदी की औसत दर से बढ़ा है।
कंपनी के पास इस समय महाराष्ट्र में पांच बॉट (बिल्ट, ऑपरेट, ट्रांसफर) ऑर्डर हैं। इनमें से कसेली पुल अगले महीने सितंबर से पहले पूरा हो जाना है। पनवेल-इंदापुर और मनोर-वाडा-भिवंडी का प्रोजेक्ट जुलाई 2013 तक पूरा होना है। मनोर-वाडा-भिवंडी प्रोजेक्ट महाराष्ट्र और गुजरात की औद्योगिक बेल्ट को जोड़ने का काम करेगा। अहमदनगर-करनाला-तेमभुरनी प्रोजेक्ट को मार्च 2014 तक पूरा करना है। इसके अलावा पांचवां ऑर्डर हाजी मलंग के रोप-वे प्रोजेक्ट का है।
कंपनी को आंध्र प्रदेश के ओसमानाबाद में एक सिंचाई परियोजना का ठेका मिला हुआ है। महाराष्ट्र की सरकारी बिजली कंपनी महावितरण के मिलकर वह कुछ बिजली परियोजनाएं लगा रही है। उसके पास मुंबई रेलवे विकास कॉरपोरेशन के कई ऑर्डर हैं। कंपनी हरियाणा में गुड़गांव की रामप्रस्थ सिटी में 255 करोड़ रुपए की लागत से ‘एज टावर’ बना रही है। नवी मुंबई में वह आर्मस्ट्रांग ग्रुप के लिए 138 करोड़ रुपए की लागत से हेक्ससिटी बना रही है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में वह बंगाल टूल्स के साथ मिलकर काम कर रही है। वह समुद्री परियोजनाओं तक भी पहुंचने की कोशिश में है।
कुल मिलाकर सुप्रीम इंफ्रास्ट्रक्चर का जमा-जमाया धंधा निरतंर बढ़ने की दिशा पकड़ चुका है। इसमें पीछे मुड़कर देखने की स्थिति नहीं आएगी। कल इसके नतीजे घोषित होंगे। इससे पहले इसे थोड़ा खरीदा जा सकता है। फिर कुछ दिन इंतजार करें क्योंकि शेयर संभवतः आगे गिरेगा ही। नतीजे अच्छे रहे तो मुनाफावसूली होगी। बुरे रहे तो निराश होकर लोग इसे बेच डालेंगे। वैसे, एक समस्या बी ग्रुप के इस स्टॉक के साथ है कि इसमें वोल्यूम ज्यादा नहीं होता।
कंपनी की 16.74 करोड़ रुपए की इक्विटी दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। इसका 56.61 फीसदी प्रवर्तकों के पास है, जबकि एफआईआई के पास इसके 6.06 फीसदी और डीआईआई के पास 4.95 फीसदी शेयर हैं। कंपनी ने 2008 के लेकर अब तक हर साल लगातार लाभांश दिया है। इस बार भी दस रुपए के शेयर पर 1.25 रुपए यानी 12.5 फीसदी लाभांश देने का प्रस्ताव है।