स्पीक एशिया अब भी खुद को एशिया में संप्रभु उपभोक्ताओं का सबसे बड़ा समुदाय बताती है, लेकिन धीरे-धीरे वह खुद को रोजमर्रा के इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बेचनेवाली फर्म के रूप में पेश करने लगी है। इस बीच यह भी खुलासा हुआ है कि घोषित तौर सर्वे के जिस काम से वह कमाई कर रही थी, वह असल में कभी था ही नहीं। वह तो बस लोगों को फंसाने का एक बहाना था और वह मल्टी लेवल मार्केटिंग का तंत्र बनाकर बेवकूफ व लालची लोगों को चूना लगा रही थी। ये सर्वे सिंगापुर में नहीं, बल्कि दादर (मुंबई) में तैयार किए जाते थे।
यह स्वीकार किया है कि नयन खनडोर नाम के एक वेब डिजाइनर ने जिसे मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने दो दिन पहले शुक्रवार को दादर से गिरफ्तार किया है। खनडोर खुद ब्रांड सैलून नाम का वेब-पोर्टल चलाता है। उसने पूछताछ के बाद पुलिस को बताया कि वह खुद अपने यहां स्पीक एशिया के सारे ई-सर्वे डिजाइन करता था जिसे बाद में स्पीक एशिया की वेबसाइट पर अपलिंक कर दिया जाता था पहले उसे महीने के 10,000 रुपए मिलते थे। बाद में महीने के उसे 1.5 लाख रुपए मिलने लगे, वो भी बाकायदा चेक से।
कहा जाता था कि ये सर्वे बड़ी-बड़ी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कंपनियां अपने लक्षित ग्राहकों की मानसिकता को जानने के लिए स्पीक एशिया से करवाती थीं। लेकिन खनडोर ने बताया है कि वह निश्चित फीस लेकर इन्हें स्पीक एशिया के लिए तैयार करता था। मुंबई पुलिस के अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर राजवर्धन का कहना है, “हमें वेब डिजाइनर और स्पीक एशिया के बीच हुए लेनदेन के 70 लाख रुपए के इनवॉयस मिले हैं। इनकी शुरूआत फरवरी 2010 से हुई थी।” बता दें कि भारत में स्पीक एशिया की सक्रियता इसके दो महीने बाद मई 2010 से बढ़ी है। खनडोर ने पुलिस को बताया कि स्पीक एशिया के सीईओ मनोज कुमार ने खुद मिलकर उसे ई-सर्वे और ई-पत्रिका तैयार करने का काम सौंपा था।
नयन खनडोर स्पीक एशिया में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा गिरफ्तार किया गया आठवां अभियुक्त है। राजवर्धन का कहना था कि, “स्पीक एशिया हमेशा से दावा करती रही है कि वह वास्तविक कंपनियों के कहने पर सर्वे करती है। लेकिन इस गिरफ्तारी के बाद साबित हो गया है कि वो अपने पैनलिस्टों को सही जानकारी नहीं दे रही थी और उनसे झूठ बोल रही थी।”
पुलिस ने खनडोर के पास से इनवॉयस के साथ ही वे सभी लैपटॉप व अन्य टेक्निकल साधन जब्त कर लिए हैं जिनके माध्यम से सर्वे बनाए जाते थे। खनडोर ने अपने बयान में बताया है कि वह सर्वे तैयार करके पहले नई दिल्ली भेजता था जहां से वो स्पीक एशिया के प्रबंधन के पास पहुंचता था। कंपनी के लोग इसे मुख्य सर्वर पर अपलिंक करते थे जहां से यह वेबसाइट पर पहुंचता था और फिर पैनलिस्ट या निवेशक उसे डाउनलोड करते थे। स्पीक एशिया की बाकी कहानी आप लोग जानते ही होंगे। नहीं तो इस साथ में स्पीक एशिया डालकर सर्च कीजिए, सारा कच्चा-चिठ्ठा आपके सामने आ जाएगा।