ल्यूपिन लिमिटेड नाम से कुछ भी लगे। लेकिन है यह खांटी देसी कंपनी। केमिस्ट्री में एमएससी करनेवाले देशबंधु गुप्ता ने 1968 में इसकी स्थापना की। बताते हैं कि गुप्ता जी शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय पेटेंट के जमाने में जाली दवाएं बनाकर बेचते थे। लेकिन 1970 में भारतीय पेटेंट एक्ट आ गया। फिर गुप्ता जी को वाल्मीकि के अंदाज में समझ में आ गया है कि गलत धंधा करने में फायदा नहीं और वे कुशल सारथी व उद्यमी की तरह कंपनी को सही दिशा में लेकर चल पड़े। इस समय ल्यूपिन दुनिया में टीबी की दवाओं की सबसे बड़ी कंपनी है। साथ ही उसने डायबिटीज से लेकर ब्लड प्रेशर तक की दवाओं में अपना सिक्का जमा रखा है।
आय के हिसाब से वह भारत की चौथी बड़ी दवा कंपनी है। देश में उसके करीब 400 मेडिकल सेल्स रिप्रजेंटेटिव हैं। घरेलू बाजार में 3 फीसदी हिस्सेदारी है। देश में उसके आठ संयंत्र या फैक्ट्रियां गोवा, तारापुर, अंकलेश्वर, जम्मू, मंडीदीप, इंदौर, औरंगाबाद और वडोदरा में हैं, जबकि नौवां संयंत्र जापान के सैंडा में है। उसके तीन भारतीय संयंत्रों को अमेरिका के खाद्य व औषध प्रशासन (यूएसएफडीए) ने अनुमोदित कर रखा है जहां बनी दवाएं बिना किसी बाधा के अमेरिकी बाजार में बेची जा सकती हैं। दो हफ्ते पहले ही उसके एक नए कैप्सूल को यूएसएफडीए की मान्यता मिली है। वह अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की पांचवीं सबसे बड़ी सप्लायर है। कहने का मतलब कि कंपनी का देशी-विदेशी बड़ा चौकस चल रहा है।
लगता है इसीलिए कंपनी पर किसी की नजर लग गई है। शोर है कि वह अपना भारतीय धंधा बेचने जा रही है। बता दें कि कंपनी की करीब 30 फीसदी आय घरेलू बाजार से होती है। उसकी आय वित्त वर्ष 2010-11 में 5706 करोड़ रुपए थी, जिसमें से 1573 करोड़ रुपए घरेलू बाजार से आए थे। कंपनी ने जोरदार खंडन किया है कि घरेलू धंधा किसी और को बेचने का उसका कोई इरादा नहीं है। लेकिन बाजार मानने को तैयार नहीं है। असल में पिछले कई महीनों से कंपनी प्रबंधन से जुड़े लोग बाजार में अपने 1000-5000 शेयर में बेचते जा रहे हैं जिसका घोषणा नियमानुसार कंपनी ने एक्सचेंज में कर रखी है। उन्होंने अपने शेयर 470 से लेकर 485 रुपए तक के भाव पर बेचे हैं। हो सकता है कि इस सतत ब्रिकी से कंपनी को बेचे जाने को हवा मिली हो।
फिलहाल ए ग्रुप में शामिल ल्यूपिन का दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर दो दिनों से हिचकोले खाने के बाद कल बीएसई (कोड – 500257) में 478.95 रुपए और एनएसई (कोड – LUPIN) में 479.70 रुपए पर बंद हुआ है। कंपनी चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के नतीजे 27 जुलाई को घोषित करेगी। फिलहाल 31 मार्च 2011 तक के नतीजों के अनुसार उसका सालाना स्टैंड-एलोन ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 18.18 रुपए है। इस तरह उसका शेयर फिलहाल 26.34 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।
पिछले एक महीने में ल्यूपिन का शेयर 419 रुपए से 482 रुपए तक गया है। क्या अब भी इसमें बढ़त की गुंजाइश है? एचडीएफसी सिक्यूरिटीज ने फरवरी 2011 में जारी अपनी एक रिपोर्ट में इसके साल भर में 509 रुपए तक जाने का अनुमान पेश किया था। अगर उसे सही मानें तो इसमें करीब 6 फीसदी बढ़त की गुंजाइश दिखती है। वैसे, साल भर पहले यह अगस्त 2010 में सबसे कम 23.14 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हुआ था। उस दौरान 31 अगस्त 2010 को हासिल 348 रुपए का भाव उसका 52 हफ्ते का सबसे कम मूल्य है। ऊपर में यह 30 नवंबर 2010 को 519.80 रुपए तक गया था। तब इसका पी/ई अनुपात 36.08 था। इस लिहाज से तो इसे ऊपर में 650 रुपए तक चला जाना चाहिए।
आकलन है कि अगले दो सालों में कंपनी की बिक्री 20 फीसदी की दर से बढ़ेगी। सुप्रैक्स और एंटारा जैसे ब्रांड उसके भावी विकास का आधार बन सकते हैं। इसलिए कंपनी बिके या न बिके, उसका धंधा बढ़ना ही है। छोटी अवधि में इस स्टॉक के ज्यादा बढ़ने की गुंजाइश नहीं है। लेकिन लंबे समय के लिए इसमें यकीनन निवेश किया जा सकता है। कंपनी की इक्विटी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 46.690 फीसदी है, जबकि एफआईआई के पास इसके 23.57 फीसदी और डीआईआई के पास 19.19 फीसदी शेयर हैं।