रुपया अपने नामराशियों से अलग हो गया। इंडोनेशिया के रुपैया और पाकिस्तान, नेपाल व श्रीलंका के रुपए से अलग उसने अपनी पहचान हासिल कर ली। अब अंग्रेजी वालों को भी रुपए के लिए Rs या INR नहीं लिखना पड़ेगा। Re को रुपया समझने के भ्रम से भी निजात मिल गई है। रुपया दुनिया के पांच आर्थिक केंद्रों की मुद्राओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो गया है। अमेरिका के डॉलर, यूरोप के यूरो, ब्रिटेन के पौंड स्टर्लिंग और जापान के येन की तरह उसे अपना प्रतीक मिल गया। दुनिया की चार सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के ब्रिक देशों (ब्राजील, रूस, भारत व चीन) में उसने सबसे पहले अपनी ब्रांडिंग कर ली है। हिंदी के र में ऊपर के हिस्से में लगाया बराबर का निशान और बन गई रुपए की मोहर, उसका चेहरा। इसमें अंग्रेजी के R की खड़ी डंडी को हटाकर बची आकृति भी निहित है।
यह परंपरा और आधुनिकता दोनों का मेल है। इसमें भारतीयता भी है और वसुधैव कुटुम्बकम् का वैश्विक भाव भी। खास बात यह है कि इसे किसी विज्ञापन एजेंसी या लोगो डिजाइनर को मोटी-तगड़ी रकम देकर नौकरशाहों या मंत्रियों की देखरेख में नहीं बनाया गया है। इसे बनाया है हमारे-आप जैसे आम भारतीय ने। हमारे-आप जैसे 3000 लोगों ने पूरा मन लगाकर अपनी-अपनी डिजाइन बनाकर वित्त मंत्रालय के पास भेजी थीं। फिर इनमें से पांच को छांटा सात सदस्यीय जूरी ने। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर की अध्यक्षता में बनी इस जूरी में भारत सरकार के अलावा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआईडी), जेजे इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड आर्ट, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर और ललित कला अकादमी के प्रतिनिधि शामिल थे। जूरी के फैसले में से एक का अंतिम चयन किया 15 जुलाई 2010 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने। मंत्रिमंडल का कहना है कि जल्दी ही इसे नैस्कॉम और मैट (मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिशयन ऑफ इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) के सहयोग से कंप्यूटरों के की-बोर्ड में भी शामिल कर लिया जाएगा।
रुपए के स्वीकृत प्रतीक को बनाया है डी उदय कुमार ने। अभी तक वे आईआईटी मुंबई के इंडस्ट्रियल डिजाइन सेंटर (आईडीसी) से पीएचडी विद्यार्थी के रूप में जुड़े रहे हैं और अब आईआईटी गुवाहाटी में अध्यापक के बतौर शामिल हो रहे हैं। उन्हें इस डिजाइन के लिए बतौर इनाम ढाई लाख रुपए मिले हैं। 10 अक्टूबर को 32 साल के होनेवाले डी उदय कुमार जामुन, अमरूद और बेल जैसे तमाम पौधों को अपने बच्चे मानते हैं। उन्हें अपना जन्मदिन भले ही भूल जाए, लेकिन अपने इन ‘बच्चों’ का जन्मदिन वे कभी नहीं भूलते।
रुपए के नए प्रतीक की खासियत है कि इसमें तिरंगे की झलक है तो समता का निशान भी। र में ऊपर के हिस्से की दो क्षैतिज रेखाएं राष्ट्रीय झंडे के बीच अशोक चक्र का आभास देती हैं, जबकि बराबर का निशान अर्थव्यवस्था के संतुलन को दर्शाता है। इसे अर्थव्यवस्था का आंतरिक संतुलन माना गया है तो यह भी माना गया है कि यह हमें दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था की बराबरी में ला खड़ा करता है।
रुपए की अलग पहचान की जरूरत इसलिए आन पड़ी क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार तेज गति से विकास कर रही है। दुनिया भर के निवेशक अपनी पूंजी का रुख भारत की तरफ मोड़ रहे हैं। भारत इस समय दुनिया में दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बन गया है। अगले 15-20 सालों में हम चीन को भले ही पीछे न छोड़ पाएं, लेकिन अमेरिका, जर्मनी व जापान को जरूर पछाड़ सकते हैं। साथ ही विश्व के रंगमंच पर भारत की राजनीतिक और दार्शनिक भूमिका भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में रुपए का नया प्रतीक हमारे हाथ में वह परचम दे रहा है जिसे हम सभी भारतीय गर्व के साथ एक दिन सारी दुनिया में लहरा सकते हैं। ध्यान रखें, रुपए का नया प्रतीक इस या उस सरकार ने नहीं, अवाम ने गढ़ा है जिसका प्रतिनिधित्व किया है चेन्नई के डी उदय कुमार ने।
रुपये को नई अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलने से सभी भारतीयों को गर्व होना ही चाहिए | एक अरब के अपने देश को अब कई मामलो में दुनिया वाले मानने लगे है | विश्व अर्थ व्यवस्था में अब भारतीय रुपये की पहचान भी होंगी |
All person happy when he had know about this news but i think everybody would not know our INDIAN Ruppes already a INTERNATIONAL BUSINESS CURRENCY,Jo ke Apne Mai Bahut Bade Baat Hai!!!!!!!