देश की सबसे बड़ी लिस्टेड कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने जून 2011 की तिमाही में अब तक की किसी भी तिमाही से ज्यादा शुद्ध लाभ कमाया है। लेकिन बाजार व विश्लेषकों के अनुमान से यह जरा-सा पीछे रह गया। बाजार को अपेक्षा 5720 करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ की थी, जबकि कंपनी ने चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में 5661 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। यह साल भर पहले की इसी अवधि के 4851 करोड़ रुपए से 16.7 फीसदी ज्यादा है।
इस दौरान कंपनी का टर्नओवर 37.2 फीसदी बढ़कर 61,007 करोड़ रुपए से 81,018 करोड़ रुपए पर पहुच गया। कंपनी का कहना है कि रिफाइनिंग मार्जिन अच्छा होने से विकास को गति मिली। लेकिन तेल व गैस के कम उत्पादन ने इसे बांध दिया। बता दें कि कंपनी के लाभ में इस बार 1078 करोड़ रुपए की अन्य आय शामिल है, जबकि पिछली बार यह रकम 722 करोड़ रुपए ही थी।
ब्रोकरेज फर्म प्रभुदास लीलाधर के तेल व गैस विश्लेषक दीपक परीक का कहना है, “बाजार को, हो सकता है कि रिलायंस के मूल लाभ के अपेक्षा से कम रहने से निराशा हो। वैसे, लाभप्रदता इसके बाद से मुख्यतया पेट्रोकेमिकल और रिफाइनिंग के मार्जिन पर निर्भर करेगी।” इस साल की पहली तिमाही में रिलायंस का सकल रिफाइनिंग मार्जिन 10.3 डॉलर प्रति बैरल रहा है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 7.3 डॉलर प्रति बैरल और ठीक पिछली मार्च 2011 की तिमाही में 9.2 डॉलर प्रति बैरल था।
बता दें कि रिलायंस इंडस्ट्रीज पिछले कई महीनों से सरकारी नियामक से लेकर एनालिस्टों की मारक रेंज में है। कभी केजी बेसिन में कम उत्पादन तो कभी कॉरपोरेट गवर्नेंस को लेकर उसे कसा जाता रहा है। यही वजह है कि बाजार का किंग कहा जानेवाला उसका शेयर 1 नवंबर 2010 को 1187 रुपए तक जाने के बाद 20 जून 2011 को 829 की तलहटी तक गिर गया। अब भी 882.15 रुपए पर है। नतीजे आज बाजार बंद होने के बाद घोषित हुए हैं। इसलिए कल इन्हें और पीटा जा सकता है। वैसे, चालू साल 2011 में रिलायंस का शेयर करीब 17 फीसदी गिर चुका है, जबकि इस दौरान सेंसेक्स में 8 फीसदी गिरावट आई है।
हालांकि, बीते हफ्ते शुक्रवार को कैबिनेट की तरफ से ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) के साथ करार को मंजूरी मिलने से रिलांयस के प्रति नजरिया पहले से बेहतर हुआ है। रिलांयस को इस करार के तहत संयुक्त उद्यम में 30 फीसदी इक्विटी हिस्सेदारी बीपी को बेचने से 720 करोड़ डॉलर मिलेंगे।