महंगाई की चिंता रिजर्व बैंक की सोच पर भारी

बढ़ती मुद्रास्फीति को काबू में लाना रिजर्व बैंक की प्राथमिकता है। इसके लिए कड़ी मौद्रिक नीति को अपनाना जरूरी है, भले ही आर्थिक विकास को धक्का पहुंच जाए। रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की पहली त्रैमासिक समीक्षा से ठीक पहले आर्थिक हालात की स्थिति बयां करते हुए यह बात कही है।

इसलिए माना जा रहा है कि इस बार भी वह नीतिगत दरों (रेपो व रिवर्स) में 0.25 फीसदी वृद्धि कर सकता है। अभी रेपो दर 7.50 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 6.50 फीसदी है। रेपो दर वह सालाना ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के एवज में बैंकों को अल्पकालिक उधार देता है, जबकि रिवर्स रेपो दर पर बैंक उसके पास अपनी अल्पकालिक रकम रखकर उससे सरकारी बांड लेते हैं। अगर कल रिजर्व बैंक ब्याज दरें 0.25 फीसदी या 25 आधार अंक बढ़ाता है कि रेपो दर 7.75 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 6.75 फीसदी हो जाएगी।

वैसे, एक बड़ा तबका मानता है कि शायद इस बार कोई ब्याज न बढ़ाकर रिजर्व बैंक शेयर बाजार समेत सबको चौंका दे। असल में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी व सरकार की यही इच्छा है। बता दें कि रिजर्व बैंक मार्च 2010 से लेकर अब तक दस बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। कल की संभावित वृद्धि 11वीं वृद्धि होगी। लेकिन मुद्रास्फीति थमने का नाम नहीं ले रही है। मई 2011 में यह 9.06 फीसदी थी तो अगले महीने जून 2011 में 9.44 फीसदी हो गई। रिजर्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति का तसल्ली वाला स्तर 4 से 4.5 फीसदी है।

पहले रिजर्व बैंक ने कहा था कि मुद्रास्फीति की दर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी अक्टूबर से घटने लगेगी। लेकिन हाल ही में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बयान दिया कि मुद्रास्फीति के घटने का क्रम दिसंबर के बाद ही शुरू हो सकता है। रिजर्व बैंक ने तिमाही आर्थिक रिपोर्ट ने कहा है, “ऊंची मुद्रास्फीति और इसमें आती धीमी कमी ने रिजर्व बैंक के सामने मौद्रिक नीति में मुद्रास्फीति-विरोधी रुख अपनाने की स्थिति पेश कर दी है।”

रिजर्व बैंक ने आर्थिक जगत की प्रमुख हस्तियों के सर्वे के आधार पर कहा है कि चालू वित्त वर्ष में पहले जीडीपी में विकास दर की अपेक्षा 8.2 फीसदी थी, लेकिन अब यह 7.9 फीसदी पर आ गई है। वहीं मुद्रास्फीति की अपेक्षा पहले 7.5 फीसदी थी, जो अब 8.6 फीसीद हो गई है।

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