एक्सचेंजों के मालिकाने पर रिजर्व बैंक व सेबी एकमत, व्यापक हो आधार

स्टॉक एक्सचेंजों के स्वामित्व का आधार व्यापक होना चाहिए। उसमें विविधता होनी चाहिए ताकि इन व्यवस्थागत रूप से महत्वपूर्ण संस्थानों को अच्छी तरह चलाया जा सके। यह राय है वित्तीय क्षेत्र की दो शीर्ष नियामक संस्थाओं – भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति व विनिमय बोर्ड (सेबी) की। स्टॉक एक्सचेंज पूंजी बाजार का हिस्सा हैं और उन पर सीधा नियंत्रण सेबी का है। इसलिए बैंकिंग नियामक का उनके स्वामित्व पर दो-टूक राय रखना काफी मायने रखता है।

सोमवार को देश के तीसरे प्रमुख करेंसी डेरिवेटिव एक्सचेंज, यूनाइटेड स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया (यूएसई) का उद्घाटन करते हुए रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर श्यामला गोपीनाथ ने कहा कि बाजार के तंत्र से जुड़ी किसी कंपनी में विविधीकृत स्वामित्व बहुत जरूरी है। अंततः एक्सचेंज सार्वजनिक उपयोग के संस्थान हैं। ऐसे स्वामित्व से उनमें अच्छा गवर्नेंस आता है। श्यामला गोपीनाथ के बाद सेबी के चेयरमैन सी बी भावे ने उनकी बात का समर्थन किया और कहा, “मुझे खुशी है कि यूएसई विविधीकृत स्वामित्व के साथ शुरू हो रहा है। हम चाहते हैं कि जो मकसद पूरा करने का दायित्व उस पर है, वह उसे पूरा करे।”

स्टॉक एक्सचेंजों के स्वामित्व पर रिजर्व बैंक और सेबी की यह राय काफी अहम है क्योंकि इसी मसले पर सेबी ने देश के दूसरे महत्वपूर्ण करेंसी डेरिवेटिव एक्सचेंज एमसीएक्स-एसएक्स को इक्विटी ट्रेडिंग की इजाजत देना लटका रखा है और एमसीएक्स-एसएक्स इनके खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में चला गया है। कोर्ट ने सेबी को इस बारे में 30 सितंबर तक अंतिम फैसला लेने को कहा है। नियम यह है कि किसी भी स्टॉक एक्सचेंज के स्वामित्व या इक्विटी में किसी एक कॉरपोरेट इकाई की अधिकतम हिस्सेदारी 5 फीसदी और घरेलू वित्तीय संस्थाओं की हिस्सेदारी 15 फीसदी तक हो सकती है।

एमसीएक्स-एसएक्स बना तो उसमें दो प्रवर्तकों एमसीएक्स और फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड (एफटीआईएल) की इक्विटी हिस्सेदारी क्रमशः 51 व 49 फीसदी थी। सितंबर 2008 में उसे सेबी ने इस शर्त पर करेंसी डेरिवेटिव शुरू करने की इजाजत दी थी कि दोनों प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी घटाकर 5-5 फीसदी पर ले आएंगे। एक्सचेंज ने धीरे-धीरे 18 बैंकों और आईएफसीआई जैसी वित्तीय संस्थाओं को स्वामित्व में हिस्सेदार बनाया और सेबी का नियम पूरा कर दिया। लेकिन सेबी ने इस आधार पर उसे इक्विटी ट्रेडिंग की इजाजत नहीं दी कि उसने नियम का शब्दों में पालन किया है, भावना में नहीं है। एमसीएक्स-एसएक्स का अपनी सफाई में कहना है कि उसकी 89 फीसदी इक्विटी बैंकों व सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं के पास है, जबकि दो अन्य राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंजों एनएसई और बीएसई में 60 फीसदी मालिकाना विदेशी व निजी निवेशकों के हाथ में है।

इस मायने में सोमवार से शुरू हुए नए स्टॉक एक्सचेंज यूएसई की स्थिति काफी बेहतर है। सार्वजनिक क्षेत्र के सभी 21 बैंक उसके शेयरधारक हैं। इसमें इलाहाबाद बैंक व बैंक ऑफ बड़ौदा से लेकर आईडीबीआई बैंक व भारतीय स्टेट बैंक तक शामिल है। साथ ही निजी क्षेत्र के पांच बैंक – एक्सिस बैंक, फेडरल बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और जे एंड के बैंक उसमें भागीदार हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की 15 फीसदी पूंजी इसमें लगी है। इसके अलावा जेपी कैपिटल, एमएमटीसी और इंडियन पोटाश ने भी यूएसई में निवेश कर रखा है।

लेकिन सेबी का नियम व्यवहार में बड़ा अस्पष्ट और घालमेल से भरा लगता है। जैसे, देश के प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स ने हाल ही में तय किया है कि वह अपनी 26 फीसदी इक्विटी जेपी कैपिटल को बेचेगा। खैर, जे पी कैपिटल तो एक्सचेंज की एंकर निवेशक होगी। लेकिन इसी बीच क्रिसिल ने एक्सचेंज में अपनी 12 में से 7 फीसदी इक्विटी रेणुका शुगर्स को बेच दी है। इससे एनसीडीईएक्स में क्रिसिल की हिस्सेदारी तो घटकर 5 फीसदी पर आ गई, लेकिन रेणुका शुगर्स की 5 फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गई।

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