आम भारतीय मानसिकता संपत्ति को भौतिक रूप में देखने-महसूस करने की है। हम धन को गाड़कर रखते रहे हैं। अब भी जमीन से हमारा गहरा जुड़ाव है और हमारी आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा संपत्ति को भौतिक रूप में ही देखना चाहता है। लेकिन डीमैट के इस दौर में संपत्ति को भौतिक रूप से देखने का मनोविज्ञान नहीं चल सकता। इसे तोड़ना होगा, बदलना होगा, जिसके लिए शिक्षा जरूरी है। इससे हम नक्सली हिंसा व अशांति को भी रोक सकते हैं। यह कहना है हमारे कॉरपोरेट कार्य मंत्री सलमान खुर्शीद का। वे बुधवार को मुंबई में इंडिया इनवेस्टर वीक के तहत सीआईआई (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) द्वारा आयोजित समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि बचत की आदत हम में है। इसका अंदाजा घरेलू बचत दर की 37 फीसदी वृद्धि दर से लगाया जा सकता है। लेकिन संपत्ति को भौतिक रूप में देखने की मानसिकता के चलते इस बचत का महज एक से दो फीसदी हिस्सा ही पूंजी बाजार में आ रहा है। जमीन टुकड़ों में बंटती जा रही है। लेकिन किसान उससे चिपके हुए हैं। हमें सोचना होगा कि हम कृषि में कॉरपोरेट क्षेत्र को कैसे लाएं। किसानों को कॉरपोरेट इंडिया से कैसे जोड़ा जाए।
सलमान खुर्शीद ने कहा कि कॉरपोरेट इंडिया कुछ लोगों तक सीमित नहीं है। इसे गलियों-मोहल्लों तक पहुंचाना होगा। जिस तरह सरकार ने तीन स्तरीय ढांचा बनाकर आम आदमी को राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रबंधन में सहभागी बनाया है, उसी तरह कॉरपोरट क्षेत्र में आम निवेशकों को भागीदार बनाना जरूरी है। मंत्री महोदय पूरी तरह नारे गढ़ने के मूड में नजर आए। उन्होंने कहा कि जो वोट नहीं करता, वो खुद को सिस्टम से बाहर रखता है, उसी तरह जो निवेश नहीं करता, वो खुद को देश की विकास गाथा से बाहर रखता है।
उनका कहना था कि लोगों को रीयल एस्टेट जैसे माध्यमों में निवेश करने के पारंपरिक तरीके से उबारना होगा। अगर उनका पैसा पूंजी बाजार में आएगा तो वे देश की उद्यमशीलता में भागीदार बनेंगे। इसलिए कॉरपोरेट क्षेत्र के सामने बड़ी चुनौती यह है कि वित्तीय निवेश माध्यमों को कैसे गांवों और दूरदराज के इलाकों तक ले जाया जाए। हमें उपभोक्ता को निवेशक बनाना है, शेयरधारक बनाना है। इसके लिए भाषा की बाधाएं तोड़ी जा रही हैं। कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने निवेशक शिक्षा से जुड़ी अपनी वेबसाइट अब 12 भारतीय भाषाओं में लांच कर दी है। आज ही इसे मराठी में पेश किया गया।
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंजों में फिर से जान डालना जरूरी हो गया है। दिल्ली स्टॉक एक्सचेंज जैसे कुछ एक्सचेंजों ने इस दिशा में पहल भी की है। साथ ही यह भी इंतजाम करने होंगे ताकि पूंजी बाजार की सुविधा लघु व मध्यम क्षेत्र (एसएमई) को भी मिल सके। समतामूलक विकास के लिए जरूरी है कि आबादी के तमाम हिस्सों को विकास के समान अवसर मिलें।
इसी आयोजन के अगले सत्र में कई कंपनियों में स्वतंत्र निदेशक की भूमिका निभानेवाले जानेमाने चार्टर्ड एकाउंटेंट शैलेश हरिभक्ति ने कहा कि कॉरपोरेट क्षेत्र के सामने देश के 50 करोड़ बचतकर्ताओं को निवेशक में बदलने की चुनौती है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि वे करेंसी नोट जैसी सुरक्षा वित्तीय प्रपत्रों में भी महसूस कर सकें। इसके लिए देश में नियामक संस्थाओं का स्तरीय होना जरूरी है। उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि 74 फीसदी लोग नियामक संस्थाओं में भरोसा जमने के बाद अपने निवेश को लेकर निश्चिंत हो जाते हैं।