अमेरिका के सिर चढ़ा 99/1% का आंदोलन

अमेरिका के कई शहरों में एक बार फिर पूंजीवाद के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हुए हैं। गुरुवार को शाम ढलने के साथ उनकी संख्या बढ़ती गई। दो दिन पहले न्यूयॉर्क के ज़ुकोट्टी पार्क से निकाले जाने के बाद उन्होंने नए अड्डे खोज लिए हैं। वे ब्रुकलिन ब्रिज की तरफ कूच कर गए। पुलिस ब्रिड रोडवे से जानेवाले 65 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले बुधवार रात न्यूयॉर्क में ‘वॉल स्ट्रीट कब्जा करो’ अभियान में सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया और 300 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया।

लॉस एजेंलिस, लास वेगास, बॉस्टन, वॉशिंगटन और पोर्टलैंड जैसे अन्य अमेरिकी शहरों में भी गुरुवार को ऐसे ही प्रदर्शन हुए। लॉस एजेंलिस में करीब 500 लोग बैंक ऑफ अमेरिका टावर और वेल्स फार्गो प्लाजा के सामने जमा हुए। प्रदर्शनकारियों ने बैंकों को बेलआउट दिया, हमें बेच दिया के नारे लगाए। वहां दो दर्जन से ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं। लास वेगास में 21 और पोर्टलैंड में 20 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

शिकागो में शिकागो नदी के तट पर सैकड़ों लोग जमा हुए। शाम के वक्त जब ट्रैफिक चरम पर था, तभी प्रदर्शनकारी पुल पर चढ़ गए और यातायात रोक दिया। शुरुआत में प्रदर्शन को देख रहे कुछ लोग भी बाद में उसका हिस्सा बन गए।

‘हर दिन, हर हफ्ते, वॉल स्ट्रीट के बंद करो’ के नारों के साथ 1000 से ज्यादा प्रदर्शनकारी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के सामने जमा हुए। पुलिस के भारी भरकम इंतजाम लोगों के सैलाब के आगे उखड़ते चले गए। प्रदर्शनकारी चौराहों पर बैठ गए। अंधेरा होते होते प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती चली गई। श्रम संगठन और कई अन्य संगठनों से जुड़े लोग नारे लगाते हुए वॉल स्ट्रीट के सामने पहुंच गए। इसके बाद कई हजार प्रदर्शनकारी बैनर और पोस्टरों के साथ मैनहट्टन से ब्रुकलिन ब्रिज तक मार्च करते हुए आगे बढ़े।

वॉल स्ट्रीट कब्जा करो का यह अभियान 17 सितंबर को न्यूयॉर्क से शुरू हुआ। पुलिस को जब तक भनक लगती तब तक हजारों प्रदर्शनकारी ब्रुकलिन ब्रिज पर चढ़ चुके थे। ब्रुकलिन ब्रिज कब्जा करो प्रदर्शन की पहचान बन चुका है। पहले प्रदर्शन के दौरान 700 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद कई अन्य देशों में भी ऐसे प्रदर्शन हो रहे हैं। अभियान की शुरुआत कनाडा के स्वंयसेवी संगठन एडबस्टर्स ने की। संगठन के मुताबिक पूंजीवाद की वजह से आर्थिक सामाजिक विषमता बढ़ी है। बेरोजगारी, लालच और भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिला है। आंदोलनकारियों के मुताबिक 99 फीसदी लोग आम जिंदगी से रोज लड़ रहे हैं. वहीं सिर्फ 1 फीसदी अमीर ऐशो-आराम कर रहे हैं और अपने मुताबिक नीतियां भी बनवा रहे हैं।

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