हर चमकनेवाली चीज सोना नहीं होती। है तो यह कहावत, लेकिन चमक के पीछे के सच को समझने में काफी मदद करती है। राजेश एक्सपोर्ट्स की चमक का भी कुछ ऐसा ही मामला है। अभी दस दिन पहले ही उसने सितंबर तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। साल भर पहले की तुलना में बिक्री 14.43 फीसदी बढ़कर 5767.03 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 45.21 फीसदी बढ़कर 107.08 करोड़ रुपए हो गया। कंपनी की अधिकांश आय निर्यात से आती है तो टैक्स नहीं लगता। या जो भी हो, कंपनी ने अपने नतीजों में कोई टैक्स नहीं दिखाया है तो उसका कर-पूर्व और कर-बाद लाभ एकसमान है।
कंपनी का धंधा सोना आयात करके उसके आभूषण बनाकर निर्यात करने का है। बैंगलोर की कंपनी है। 1990 से धंधे में है। गुजराती मूल के दो भाई राजेश मेहता और प्रशांत मेहता इसके कर्ताधर्ता हैं। सर्राफे का पारिवारिक धंधा था जिसे इन भाइयों ने विशालकाय बना दिया है। कंपनी का दावा है कि वह इस समय दुनिया की सबसे बड़ी आभूषण निर्माता है। बैंगलोर में उसके पास साल भर में 250 टन सोने को प्रोसेस करने की क्षमता है। स्वर्ण आभूषण में वह सबसे आगे है। देश से स्वर्ण आभूषणों की सबसे बड़ी निर्यातक है। सरकार से ट्रेडिंग हाउस का दर्जा मिला हुआ है। सोने की रिफाइनिंग से लेकर रिटेलिंग तक की पूरी एकीकृत श्रंखला उसके पास है।
उसका दावा है कि वह दुनिया में सबसे कम लागत में जेवरात बनाती है। लेकिन इसके बावजूद उसका लाभ मार्जिन इस सितंबर तिमाही में मात्र 1.85 फीसदी है। यह पिछली सितंबर तिमाही में तो 1.44 फीसदी ही थ। देश में सोने की खदानें बंद हैं तो कंपनी सारा सोना बाहर से आयात करती है। सोने के अंतरराष्ट्रीय भाव, ऊपर से रुपए की विनिमय दर में उथल-पुथल। दोनों का जोखिम बराबर सिर पर मंडराता रहता है। फिर उस सोने से आभूषण बनाकर निर्यात करना। जाहिर है इतने मामूली मार्जिन के धंधे में दीर्घजीविता नहीं तलाशी जा सकती।
मार्जिन बढ़ाने के लिए कंपनी ने पहले लाभ और अब शुभ ज्वैलर्स के नाम से रिटेल शोरूम खोले हैं। अभी शुभ ज्वैलर्स नाम के उसके 73 शोरूम हैं। ये सभी कर्नाटक में हैं। अगली दो तिमाहियों में 60 और स्टोर कर्नाटक में खोलने की योजना है। इसके बाद दक्षिण भारत के दो और राज्यों तक कंपनी अपना रिटेल तंत्र फैलाएगी। अंततः उसकी योजना 2014 तक पूरे देश में शुभ ज्वैलर्स नाम से 500 स्टोर खोलने की है।
यह सारा विस्तार अपनी जगह है। लेकिन सबसे खास बात मार्जिन और सोने के धंधे से जुड़े अंतरराष्ट्रीय जोखिम की है। अच्छी बात है कि प्रवर्तकों ने कंपनी के कोई शेयर गिरवी नहीं रखे हैं। लेकिन 31 मार्च 2011 तक कंपनी के ऊपर 2530.39 करोड़ रुपए का कर्ज था। कंपनी का मौजूदा ऋण/इक्विटी अनुपात 1.68 है। सितंबर 2011 की तिमाही में ही कंपनी ने 49.57 करोड़ का ब्याज अदा किया है। इन सारे दबावों और बाजार की खराब हालत के बावजूद उसके शेयर का तेवर चढ़ा हुआ है। सोने के धंधे का खेल कहीं न कहीं, बाजार में भी चलता है। तभी तो इसके शेयरों में बराबर जमकर धंधा होता है।
कंपनी का एक रुपए का अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 531500) में 128.20 रुपए और एनएसई (कोड – RAJESHEXPO) में 128.70 रुपए पर बंद हुआ है। यह उसके 52 हफ्ते के उच्चतम स्तर 151 रुपए के काफी करीब है जो उसने अभी पिछले ही महीने 31 अक्टूबर 2011 को हासिल किया था। शेयर इस समय 11.14 रुपए के टीटीम ईपीएस को देखते हुए 11.51 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। लेकिन उसकी समकक्ष कंपनियों में गीतांजलि जेम्स का शेयर 6.81 और श्री गणेश ज्वैलरी का शेयर 2.26 के ही पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।
राजेश एक्सपोर्ट्स के स्टॉक पर नजर डालें तो यह पिछले दो सालों में 75 से 150 रुपए के चक्र में घूमता रहा है। इससे पहले मार्च 2009 तक 22.-25 कर रहा था। हां, जनवरी 2008 में जरूर 161.50 और उससे एक महीने पहले दिसंबर 2007 में 170 रुपए पर था। इसलिए जिन लोगों की दिलचस्पी इस उतार-चढ़ाव का फायदा ट्रेडिंग के जरिए उठाने में हैं, वे चाहें तो इस पर दांव लगा सकते हैं, वो भी अभी नहीं, इसके 80-90 रुपए तक गिर जाने के बाद। बाकी आम निवेशकों को तो इससे दस गज का फासला ही बनाकर चलना चाहिए। वजह यह भी है कि सोने के धंधे में जितना काला-सफेद होता है, उसमें कब कहां से कोई ‘ब्लैक-होल’ निकल आएगा, नहीं कहा जा सकता।
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