आईपीओ में ज्यादा दाम पर मर्चेंट बैंकरों को हिदायत

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने आईपीओ में शेयरों के दाम अधिक रखने पर चिंता जताई है। सेबी के चेयरमैन सी बी भावे में शुक्रवार को मुंबई में मर्चेंट बैंकिंग उद्योग पर आयोजित एक समारोह में कहा कि इनवेस्टमेंट बैंकरों को आपसी होड़ में पब्लिक इश्यू में जारी शेयरों के दाम बढ़ाने के बजाय निवेशकों के हितों का भी ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब बहुत सारे इश्यू आ रहे हों और बाजार अच्छा हो तो हमेशा ऐसा देखा गया है कुछ कंपनियां बिना पर्याप्त जानकारी दिए या काफी ज्यादा मूल्य पर अपने इश्यू ले आती हैं।

बता दें कि बुक बिल्डिंग वाले सारे आईपीओ में शेयरों का मूल्य उसके मर्चेंट बैंकर तय करते हैं। कहने को यह मांग के आधार पर तय होता है, लेकिन व्यवहार में मर्चेंट बैंकर प्रवर्तक की रजामंदी और बाजार के माहौल को देखते हुए इसे तय करते हैं। इधर, बाजार में धड़ाधड़ आईपीओ आ रहे हैं। नए इश्युओं के बारे में तो इस हफ्ते ने रिकॉर्ड बनाया है और इस दौरान कुल 11 इश्यू खुले रहे। इनमें से शुक्ररवार को बंद हुआ इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स का ही आईपीओ 10-11 रुपए पर आया है। बाकी तो भारी भरकम प्रीमियम पर हैं। जैसे, वीए टेक के आईपीओ में शेयर का दाम 1230 से 1310 रुपए रखा गया है।

सेबी चेयरमैन भावे ने कहा कि इनवेस्टमेंट/मर्चेंट बैंकरों को आपस में इश्यू मूल्य बढ़ाने की होड़ नहीं करनी चाहिए, बल्कि यह सोचना चाहिए कि निवेशकों के लिए भी कुछ बचा रह जाए। हालांकि उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो नहीं कि मर्चेंट बैंकर सरकारी कंपनियों के पब्लिक इश्यू को पकड़ने के लिए बुक रनिंग व लीड मैनेजर के लगभग न के बराबर फीस ले रहे हैं। उनका कहना था कि अपने काम के लिए कितनी फीस लेनी है, इसका फैसला मर्चेंट बैंकरों पर ही छोड़ देना चाहिए। हालांकि न के बराबर फीस लेने की यह प्रवृति उद्योग के लिए नुकसानदेह हो सकती है।

आईपीओ की लिस्टिंग इश्यू बंद होने के बाद सात दिन में करने के मसले पर भावे का कहना था कि यह कोई जरूरी नहीं है, बल्कि एक सुझाव है जिस पर विचार किया जा रहा है। सेबी का एक पैनल इसे लागू करने की व्यावहारिकता पर गौर कर रहा है। पैनल की रिपोर्ट नवंबर तक आ जाएगी। इसके बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। बता दें कि पहले इश्यू बंद होने के बाद 22 दिनों के भीतर उसके लिस्ट हो जाने का नियम था। इसे 1 मई 2010 से घटाकर 12 दिन कर दिया गया है।

नए टेकओवर नियमों के बारे में उनका कहना था कि टेकओवर कमिटी की रिपोर्ट पर निवेशकों से मिले फीडबैक व इसे अपनाने पर अक्टूबर में सेबी की अगली बोर्ड बैठक में विचार किया जाएगा। जुलाई में आई इस रिपोर्ट में ओपन ऑफर की ट्रिगर सीमा 15 से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का सुझाव है और यह भी कहा गया है कि अधिग्रहण करनेवाले को कंपनी के सारे 100 फीसदी शेयर खरीदने का ऑफर पेश करना चाहिए।

विदेशी फंड के अबाध प्रवाह से शेयर बाजार के बढ़ने के बारे में पूछे गए सवाल पर सेबी प्रमुख का कहना था कि सेबी बाजार के स्तर को नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा को ध्यान में रखती है। हमें स्टॉक एक्सचेंजों से आश्वासन मिला है कि वे एफआईआई से पर्याप्त मार्जिन इकट्ठा कर रहे हैं और उसका बराबर सेटलमेंट हो रहा है।

भावे ने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि एफआईआई को 1 अक्टूबर से एक या गिने चुने निवेशकों से बने सब-एकाउंट से निवेश करने का सिलसिला रोकना पड़ेगा। उन्होंने यह तिथि आगे बढ़ाने की एफआईआई की मांग ठुकरा दी। एफआईआई को सेबी के नए मानकों के अनुरूप नए सिरे से रजिस्ट्रेशन कराना होगा। अब नियम यह बन गया है कि एफआईआई के सब-एकाउंट में किसी एक निवेशक का योगदान 49 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।

इसी समारोह में सेबी की कार्यकारी निदेशक उषा नारायणन ने अलग से बताया कि आईपीओ के विज्ञापनों के बारे में एक बहस पत्र तैयार किया जा रहा है। तैयार होने के बाद इसे सेबी की वेबसाइट पर डाल दिया जाएगा या हो सकता है कि सेबी की कोई अपनी कमिटी इस पर विचार करे। फिलहाल इस पर कोई स्पष्ट फैसला नहीं हुआ है।

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