महाराजा श्री उम्मेद मिल्स का शेयर पिछले चार कारोबारी सत्रों से कुलांचे मार रहा है। 2 जून, गुरुवार को उसका 10 रुपए अंकित मूल्य का शेयर 425.40 रुपए पर बंद हुआ था। 3 जून, शुक्रवार को यह 6.21 फीसदी बढ़कर 451.80 रुपए पर बंद हुआ। सोमवार को खुला 460 रुपए पर। लेकिन बंद हुआ 496.75 रुपए तक उठने के बाद 7.12 फीसदी बढ़कर 483.95 रुपए पर है। कल, 7 जून को तो उसने 511.05 रुपए पर नया शिखर बना लिया। हालांकि बंद हुआ है 2.89 फीसदी की बढ़त के साथ 497.95 रुपए पर।
इधर हाल-फिलहाल इस कंपनी के साथ ऐसा क्या अनोखा हो गया कि महीने पर पहले 400 रुपए के आसपास टहल रहा शेयर अचानक उछल कर 511 रुपए की मुंडेर पर जा बैठा है? दो दिन पहले रेटिंग एजेंसी क्रिसिल से जुड़ी इक्विटी रिसर्च ने इस पर एक रिपोर्ट निकाली है जिसमें फंडामेंटल्स के मामले में इसे पांच में से दो का ग्रेड दिया गया है, यानी समझिए कि 40% पर किसी तरह पासिंग नंबर मिले हैं। लेकिन मूल्यांकन के मामले में पांच में पांच का ग्रेड दिया है। उसका दावा है कि शेयर का साल भर बाद का वाजिब मूल्य 906 रुपए बनता है। हालांकि ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ जैसी वैधानिक चेतावनी में क्रिसिल ने कह दिया है कि उसके मूल्यांकन ग्रेड को शेयर की खरीद, बिक्री या होल्ड करने की सलाह न समझा जाए।
क्रिसिल की रिपोर्ट 6 जून को सार्वजनिक की गई। महाराजा श्री उम्मेद मिल्स का शेयर केवल बीएसई में लिस्टेड है। उस दिन 6 जून को बीएसई (कोड – 530059) में उसके 4053 शेयरों के सौदे हुए जिसमें से 3675 यानी 90.67 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। कल 7 जून को बी ग्रुप की इस कंपनी के 10,179 शेयरों में ट्रेडिंग हुई जिसमें से 59 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। वोल्यूम के इन आंकड़ों से खास कुछ नहीं झलकता। लेकिन हफ्ता-दस दिन पीछे जाएं तो पता चलता है कि 25, 26 व 27 मई को इसके क्रमशः 10,687,13,565 व 12,011 शेयरों के सौदे हुए थे जिनमें से डिलीवरी के लिए ट्रेड हुए शेयरों का अनुपात तीन-चौथाई से ज्यादा था। मगर, ऐसा संभव नहीं लगता कि कोई इन 26-28 हजार शेयरों को निकालने के लिए भावों को चढाएगा। फिर क्या हो सकता है?
कंपनी ने 26 मई को सालाना नतीजे घोषित किए हैं जो कई मायनों में शानदार हैं। इनके अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 में साल भर पहले की तुलना में उसकी बिक्री 319.53 करोड़ से 35.02 फीसदी बढ़कर 431.43 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 14.56 करोड़ रुपए से 954.67 फीसदी बढ़कर 153.56 करोड़ रुपए हो गया है। कंपनी का सालाना स्टैंड-एलोन ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 35.01 रुपए है। इस तरह उसका शेयर 497.95 के बंद भाव पर अभी 14.22 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। कंपनी की इक्विटी 8.64 करोड़ रुपए है, जबकि उसके पास 234.41 करोड़ रुपए का रिजर्व है। इस तरह उसकी नेटवर्थ हो गई 243.05 करोड़। इसे जारी शेयरों की संख्या से भाग देने पर कंपनी की मौजूदा प्रति शेयर बुक वैल्यू निकलती है 281.30 रुपए।
बता दें कि महाराजा श्री उम्मेद मिल्स कोलकाता के लक्ष्मी निवास बांगुर समूह की 1939 में बनी टेक्सटाइल कंपनी है। वह कॉटन यार्न और डाई किए हुए फैब्रिक बनाती है। उसकी उत्पादन इकाई पाली (राजस्थान) में है। कंपनी की लगभग 80 फीसदी बिक्री कॉटर्न यार्न से आती है। अब देखते हैं कि क्रिसिल इसके जबरदस्त मूल्यांकन के लिए क्या तर्क दे रही है। पहला, कॉटन यार्न की मांग अगले पांच सालों में 6.5 फीसदी सालाना की चक्रवृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है। बढ़ती मांग को पकड़ने के लिए कंपनी अगले पांच से दस सालों में क्षमता विस्तार पर 420 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है। दूसरा, कंपनी के पास काफी जमीन है जिसे बेचकर उसकी योजना नोट बनाने की है। कंपनी के पास पाली में 69 एकड़ और कोटा में 50 एकड़ जमीन है।
इन तीनों मुद्दों पर नुक्ता यह है कि कॉटन यार्न का मुख्य कच्चा माल कपास है और उसके भावों में उधर काफी ऊंच-नीच व आग सी लगी हुई है। इसलिए अपनी 80 फीसदी कमाई कॉटन यार्न से कमानेवाली कंपनी की लाभप्रदता का मामला डावांडोल हो सकता है। दूसरे, बढ़ती होड़ के बीच पांच-दस साल की विस्तार परियोजना की कामयाबी को लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। तीसरे, कंपनी प्रवर्तक भले ही जमीन बेचकर नोट कमाने की सोच रहे हों, लेकिन रीयल एस्टेट का उनको कोई अनुभव नहीं है।
वैसे, कंपनी के पास टैक्स चुकाने के बाद 580 करोड़ रुपए का कैश है। इसमें से 120 करोड़ उसे जयपुर में जमीन बेचने से मिले हैं और 460 करोड़ रुपए आंध्र प्रदेश पेपर मिल्स में अपना निवेश बेचने से मिल रहे हैं। क्रिसिल इक्विटी रिसर्च का आकलन है कि दो साल बाद वित्त वर्ष 2012-13 में कंपनी का ईपीएस 71.3 रुपए होगा। इस तरह तब के ईपीएस को ध्यान में रखें तो कंपनी का शेयर अभी 6.98 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। क्रिसिल का कहना है कि कंपनी के सारे धंधे व हर पहलू को ध्यान में रखते हुए उसने इसके शेयर का वाजिब मूल्य साल भर में 906 रुपए होने का अनुमान लगाया है।
देखने-सुनने में तो सब अच्छा ही लग रहा है। कंपनी पिछले चार सालों में बराबर लाभांश देती रही है। 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 75 पैसे से लेकर 2.50 रुपए तक। इस बार उसने 2010-11 के लिए 5 रुपए प्रति शेयर लाभांश घोषित किया है। वैसे, कंपनी में पब्लिक की शेयरधारिता 25.17 फीसदी ही है, जबकि प्रवर्तकों के पास बाकी 74.83 फीसदी शेयर हैं। इसलिए अधिकांश लाभांश तो प्रवर्तकों के ही खाते में जाता होगा। एफआईआई व डीआईआई इस कंपनी से पूरी तरह दूर हैं। इन सारे पहलुओं को देखने के बाद क्या आपको लगता है कि मुंडेर पर बैठे महाराजा श्री को पकड़ना सही होगा? हमने अपनी तरफ से जितना हो सका, बता दिया। बाकी आपको पता करना और तब, फैसला करना है।