वहां दाब, यहां मैग्मा बढ़ने को बेताब

मित्रों! बड़े विनम्र अंदाज में आज से वापसी कर रहा हूं। कोई शोर-शराबा नहीं। कोई धूम-धड़ाका नहीं। दूसरों के कहे शेयरों को आंख मूंदकर आपको बताने की गलती अतीत में हमसे जरूर हुई है। सूर्यचक्र पावर इसका आदर्श नमूना है। लेकिन जहां भी औरों की सलाह को सोच-समझ कर पेश किया, वहां आपका फायदा ही हुआ है। जैसे, ठीक साल भर पहले हमने अपोलो हॉस्पिटल्स में निवेश की सलाह थी। तब वो शेयर 455.65 रुपए था और एचडीएफसी सिक्यूरिटीज़ की रिसर्च रिपोर्ट के हवाले हमने साल भर बाद इसके 547 पर जाने का अनुमान लगाया था। इसके बाद 15 दिसंबर 2011 को इससे भी नीचे जाकर 452.20 रुपए की तलहटी पकड़ ली। लेकिन बीते हफ्ते शुक्रवार, 28 सितंबर 2012 को अपोलो हॉस्पिटल्स का शेयर 750 रुपए का नया शिखर बनाने के बाद 728.10 रुपए पर बंद हुआ है। साल भर में करीब 60 फीसदी का रिटर्न, जबकि बैंक की एफडी में रखते तो ज्यादा से ज्यादा 10 फीसदी ब्याज मिलता।

यह है शेयरों में निवेश करने का फायदा। लेकिन इस फायदे के साथ जोखिम का तत्व बराबर नत्थी रहता है। इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। अमेरिका और दूसरे विकसित बाजारों में हर स्टॉक का बीटा दिया जाता है। इससे जोखिम का पता चलता है। अगर बीटा एक है तो माना जाता है कि स्टॉक की गति बाजार के समतुल्य है। इससे ज्यादा तो जोखिम ज्यादा और कम तो बाजार से कम जोखिम। जैसे, इस समय माइक्रोसॉफ्ट का बीटा 1.12, एप्पल का बीटा 0.86 और गूगल का बीटा 1.17 चल रहा है। बीटा के हिसाब से कोई भी निवेशक अपना धन लगाने से पहले इन स्टॉक्स से जुड़े जोखिम का अंदाजा लगा सकता है। लेकिन गणित में शून्य जैसे सबसे अहम अंक का आविष्कार करनेवाले अपने देश भारत में शेयर बाजार में निवेश के रिस्क से जुड़े इस अहम आंकड़े को देने की व्यवस्था नहीं की गई है। बस रिटर्न का हल्ला मचाया जाता है। और, हमारी पूंजी नियामक संस्था, सेबी आम निवेशकों को बाजार में खींचकर लाने की बात करती है। सरकार भी उनके लिए राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम पेश कर चुकी है। हालांकि हमारे शेयर बाजार हर स्टॉक के लिए वैल्यू एट रिस्क (वीएआर) और एक्स्ट्रीम लॉस मार्जिन (ईएलएम) जैसे आंकड़े देते हैं। इनके बारे में समझकर फिर कभी लिखता हूं।

खैर, ऐसे बहुत सारे जरूरी दूरगामी मसले हैं जिनके समाधान के बिना देश के पूंजी बाजार का विकास नहीं हो सकता। नतीजतन, उद्यमी बनने की मंशा रखनेवाले हम जैसे तमाम लोग पूंजी जुटा पाने के मौका का न मिलने पर गुजारे के लिए कहीं न कहीं चाकरी करने को मजबूर होते रहेंगे। चलिए। बड़ी लंबी दास्तान है। धीरे-धीरे सुनाता रहूंगा। बीते हफ्ते शुक्रवार को निफ्टी 5703 पर बंद हुआ है। सरकार के माकूल फैसलों का असर बाजार समाहित कर चुका है। अब बड़े निवेशक विदेशी घटनाक्रमों पर नजर गड़ाए हुए हैं। बाहर का क्या घट रहा है, इसी से हमारे बाजार की दशा-दिशा तय होगी। वैसे, आज हो सकता है कि बाजार पर मुनाफावसूली का दबाव रहे और निफ्टी 5670 तक गिर जाए। अगर ऐसा होता है तो अगले कुछ दिन तक निफ्टी इसी के ऊपर-नीचे डोलता रहेगा।

आज खास चर्चा मैग्मा फिनकॉर्प (बीएसई – 524000, एनएसई (MAGMA) की। वैसे, कमाल है कि कल रात को सोने से पहले सारा देख-ताक कर तय किया कि मैग्मा फिनकॉर्प पर लिखूंगा और आज सुबह उठकर देखता हूं तो इकनॉमिक टाइम्स के फ्रंट पेज पर इसका 25×4 का ऐड लगा हुआ है। यह तो पता था कि हम सभी धरती पर उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बंधे हुए हैं। लेकिन पता नहीं कि विचारों में कौन-सी ऐसी बंधने-बांधने की शक्ति होती है कि एक ही साथ एक ही विचार कई जगहों पर चल रहे होते हैं। एक चक्र है जिसका पूरा हिस्सा हम नहीं देख पाते। ऐड देखने के बाद मन हुआ कि मैग्मा पर न लिखूं। वैसे भी, यह फाइनेंस कंपनी है, डिपॉजिट न ले सकनेवाली एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी) और इन सभी के बारे में मुझे यही लगता है कि यह कोई वैल्यू क्रिएशन नहीं करतीं। बस, इसका पैसा, उसकी जेब में करती हैं। इसलिए इनसे दूर ही रहना चाहिए। लेकिन मूल्य-सृजन या वैल्यू क्रिएशन इतना सतही मसला नहीं है कि ऊपर-ऊपर आसानी से समझ में आ जाए। इसकी भी गुत्थी समझने में लगा हूं और समझ लेने पर आपको तफ्सील से बताऊंगा।

तब तक एक बात गांठ बांध लीजिए कि किसी भी कंपनी के शेयर का दाम तभी बढ़ता है जब वो नया वैल्यू क्रिएशन करती है और वैल्यू क्रिएशन का पता पिछले लाभ-हानि से नहीं, अगले कैश फ्लो से होता है। आज किसी भी शेयर का जो मूल्य है वो असल में उसके भावी कैश फ्लो को ही दर्शाता है।

तो लौटते हैं आज की कंपनी पर। मैग्मा फाइनेंस 1988 में बनी कोलकाता की कंपनी है। वो कार, ट्रक, ट्रैक्टर, कंस्ट्रक्शन उपकरण से लेकर अब गोल्ड लोन तक का धंधे में उतर चुकी है। गांवों और कस्बों पर उसका फोकस है। बीते वित्त वर्ष 2011-12 में उसकी परिचालन आय 975.37 करोड़ और शुद्ध लाभ 63.24 करोड़ रुपए रहा है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, अगले दो सालों में मार्च 2014 तक उसकी परिचालन आय के 47 फीसदी और शुद्ध लाभ के 67 फीसदी की चक्रवृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है। कैश फ्लो का पता उसके शुद्ध लाभ या ईपीएस से चलता है।

कंपनी का दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर शुक्रवार, 28 सितंबर 2012 को बीएसई व एनएसई दोनों में 63 रुपए पर बंद हुआ है। पिछले 52 हफ्ते का इसका उच्चतम स्तर 76.40 रुपए (30 मार्च 2012) और न्यूनतम स्तर 48.10 रुपए (18 नवंबर 2011) रहा है। आगे की बेहतर संभावनाओं को देखते हुए इसमें निवेशकों की दिलचस्पी इधर बढ़ गई है। इसका प्रमाण यह है कि शुक्रवार को बीएसई में ट्रेड हुए इसके 19,782 शेयरों में से 19,411 (98.12 फीसदी) और एनएसई में ट्रेड हुए 20,479 शेयरों में से 19,483 (95.10 फीसदी) डिलीवरी के लिए थे। कंपनी का बाजार पूंजीकरण 1195 करोड़ रुपए है। फिर भी न जाने क्यों इसे स्मॉल कैप कंपनी माना जाता है। यह बीएसई-500 सूचकांक में शामिल है।

कंपनी की 37.95 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 33.70 फीसदी है, जबकि एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) ने इसके 42.74 फीसदी शेयर खरीद रखे हैं। अगले दो साल के नजरिए के हिसाब से इस शेयर के 90 रुपए तक जाने की उम्मीद है। कारण वित्त वर्ष 2013-14 में इसकी अनुमानित बुक वैल्यू 75 रुपए आंकी गई है। इसे 1.2 से गुणा करने पर 90 रुपए का भाव निकलता है। अभी इसकी बुक वैल्यू 56.97 रुपए है और इसका शेयर बुक वैल्यू से 1.11 गुने भाव पर चल रहा है। वैसे, ये सारी रिसर्च की बातें हैं। असली बात यह है कि कोलकाता के कुछ उस्ताद लोग इसे चढ़ाने के फेर में लगे हैं। पहले 72 रुपए तक ले जाएंगे। फिर हो सकता है कि साल भर में 90 रुपए तक पहुंचा दें। पिछले तीन महीने से इसकी तैयारी चल रही है। बाकी, बराबर पढ़ते-लिखते रहें। शेयर और ऋण बाजार (बांड, एफडी, एनसीडी) की मूल अवधारणा तक पैठने की कोशिश करें। किसी के भी बहकावे में न आएं। देश के पूंजी बाजार को प्रौढ़ बनने में मदद करें। यही गुजारिश है। आपके इस प्रयास में हम भी यकीनन यथासंभव सहयोग देते रहेंगे, इसकी गारंटी है।

1 Comment

  1. Briiliant Article Sir….Thank you for sharing your knowledge with us.

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