लिक्विड फंडों में बैंकों के निवेश की सीमा बंधी

रिजर्व बैंक ने तय किया कि बैंक पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तारीख 31 मार्च को अपनी नेटवर्थ के 10 फीसदी से ज्यादा रकम म्यूचुअल फंडों की लिक्विड स्कीमों में निवेश नहीं कर सकते। मौद्रिक नीति में इस कदम की घोषणा करते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा कि इस कदम से बैंकों व म्यूचुअल फंडों के बीच चल रहे सर्कुलर कारोबार को तोड़ने की कोशिश की गई है। बैंक म्यूचुअल फंडों की ऋण आधारित अल्पकालिक लिक्विड स्कीमों में निवेश करते हैं और म्यूचुअल फंड वही रकम बैंकों द्वारा जारी सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (सीडी) जैसे अल्पकालिक प्रपत्रों में लगा देते हैं।

मंगलवार को बाद में शाम को आयोजित प्रेस कांफ्रेस में रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर श्यामला गोपीनाथ ने कहा कि इस तरह के सर्कुलर धंधे से व्यवस्थागत खतरा पैदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि मोटे तौर पर बैंकों की नेटवर्थ का 10 फीसदी करीब 50,000 करोड़ रुपए बनता है। बैंक अब इससे ज्यादा रकम म्यूचुअल फंडों की लिक्विड स्कीमों में नहीं लगा सकते।

रिजर्व बैंक के अद्यतन आंकड़ों के अनुसार बैंकों ने 8 अप्रैल 2011 तक म्यूचुअल फंडों की तमाम स्कीमों में कुल 1,11,279 करोड़ रुपए का निवेश कर रखा है। एक पखवाड़े पहले 25  मार्च 2011 तक यह निवेश 47,638 करोड़ रुपए का था। इसमें से कितना निवेश लिक्विड स्कीमों में है, इसका आंकड़ा अलग से उपलब्ध नहीं है। वैसे, श्यामला गोपीनाथ के मुताबिक यह निवेश उनकी नेटवर्थ के 2 फीसदी से लेकर 50 फीसदी तक बदलता रहता है।

रिजर्व बैंक ने बैंकों को नेटवर्थ की 10 फीसदी सीमा का लक्ष्य हासिल करने के लिए छह महीने का समय दिया है। इतनी मोहलत बैंकों के लिए काफी है। लेकिन इससे म्यूचुअल फंडों को काफी परेशानी हो सकती है क्योंकि उनकी आस्तियों (एयूएम) का बड़ा हिस्सा बैंकों से आता रहा है। बैंक अगले छह महीने में उनकी लिक्विड फंड स्कीमों से करीब 60,000 करोड़ रुपए निकाल लेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *