रिजर्व बैंक ने फिर बढ़ाई ब्याज दर, सरकार को बढ़ते घाटे पर चेतावनी

भारत के फाइनेंस जगत की सबसे बड़ी खबर। लेकिन निकली एकदम ठंडी। पिछली बार 26 जुलाई को अपेक्षा के विपरीत ब्याज दर को 0.50 फीसदी बढ़ाकर सबको चौंका देना एक अपवाद था। अन्यथा रिजर्व बैंक गवर्नर डॉ. दुव्वरि सुब्बाराव का एक खास अंदाज है। वे नीतिगत उपायों से चौंकानेवाला तत्व एकदम खत्म कर देना चाहते हैं। यह देश के केंद्रीय बैंक के कामकाज में पारदर्शिता लाने के उनके प्रयास का हिस्सा है। आज सुबह तक सबको पक्का यकीन हो चला था कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की मध्य-त्रैमासिक समीक्षा में ब्याज दरें 25 आधार अंक या 0.25 फीसदी बढ़ा देगा और ऐसा ही हुआ। न कम, न ज्यादा। रिजर्व बैंक ने तत्काल प्रभाव से रेपो दर को 8 फीसदी से बढ़ाकर 8.25 फीसदी और रिवर्स रेपो दर को 7 फीसदी से बढ़ाकर 7.25 फीसदी कर दिया है।

रेपो दर चलनिधि समायोजना सुविधा (एलएएफ) के तहत ब्याज की वह सालाना दर है जिस पर रिजर्व बैंक आम बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों के एवज में अल्पकालिक ऋण मुहैया कराता है। वहीं रिवर्स रेपो दर ब्याज की वह सालाना दर है जिस पर बैंक हर दिन रिजर्व बैंक के पास अपना अतिरिक्ति धन रखते हैं और इसके बदले में सरकारी प्रतिभूतियों लेते हैं। रिजर्व बैंक इस साल अप्रैल से बैंकों को तरलता उपलब्ध कराने की एक और सुविधा एमएसएफ (मार्जिनल स्टैंडिंग सुविधा) के रूप में दे रहा है जिसमें वह रेपो दर से एक फीसदी ज्यादा ब्याज पर अल्कालिक ऋण मुहैया कराता है। रेपो दर बढ़ जाने से अब एमएसएफ दर भी बढ़कर 9.25 फीसदी हो गई है।

रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति से जुड़ी सारी अन्य दरों को जस का तस रखा है। कुछ दिन पहले ही रिजर्व बैंक गवर्नर डॉ. सुब्बाराव ने बयान दिया था कि बैंक सरकारी बांडों में ज्यादा ही निवेश कर रहे हैं और बैंकों के लिए सरकारी बांडों में निवेश का अनिवार्य अनुपात एसएलआर (वैधानिक तरलता अनुपात) घटा दिया जाना चाहिए। अभी एसएलआर 24 फीसदी है। इस बयान के बाद लगा कि शायद उद्योग जगत को ज्यादा धन मुहैया कराने के लिए रिजर्व बैंक एसएलआर में कमी कर दें। लेकिन डॉ. सुब्बाराव ऐसी किसी हड़बड़ी में नहीं लगते। वे तो सारे नीतिगत फैसलों पर सबको साथ लेकर शांत भाव से चलने में यकीन रखते हैं।

मौद्रिक नीति की मध्य-त्रैमासिक समीक्षा में माना गया है कि इधर आर्थिक विकास दर घटी है और औद्योगिक गतिविधियां सुस्त पड़ी हैं। लेकिन मुख्य चिंता अब भी मुद्रास्फीति ही है। मुख्य मुद्रास्फीति का जुलाई के 9.2 फीसदी से बढ़कर अगस्त में 9.8 फीसदी हो जाना दिखाता है कि इस मोर्चे पर ढील नहीं दी जा सकती। इसमें से गैर-खाद्य मैन्यूफैक्चर्ड वस्तुओं की मुद्रास्फीति 7.5 फीसदी से बढ़कर 7.7 फीसदी हो गई जिससे लगता है कि मांग का दबाव बना हुआ है। तेल मार्केटिंग कंपनियों ने आज (16 सितंबर) से पेट्रोल के दाम प्रति लीटर 3.14 रुपए बढ़ा दिए हैं। इससे सीधे-सीधे थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुख्य मुद्रास्फीति 7 आधार अंक (0.07 फीसदी) बढ जाएगी। दूसरे शब्दों में, रिजर्व बैंक का कहना है कि अगर सब कुछ सामान्य रहा तो अगस्त की 9.78 फीसदी मुद्रास्फीति सितंबर में केवल पेट्रोल के महंगा होने से ही बढ़कर 9.85 फीसदी हो जाएगी।

बाकी, रिजर्व बैंक ने अच्छे मानसून और कृषि उत्पादन की संभावनाओं पर संतोष जताया है। साथ ही उसने केंद्र सरकार के खजाने पर बढ़ते बोझ को लेकर चिंता जताई है। अप्रैल से जुलाई के दौरान जहां सरकार की राजस्व प्राप्तियों में कमी आई है, वहीं पेट्रोलियम व उर्वरक सब्सिडी जैसे गैर-आयोजना खर्च बढ़ गए हैं। वित्त वर्ष के इन पहले चार महीनों में राजकोषीय घाटे का स्तर बजट अनुमान के 55.4 फीसदी तर पहुंच चुका है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसी अवधि के दौरान यह 42.5 फीसदी था। जाहिरा तौर पर रिजर्व बैंक ने वित्त मंत्रालय को चेताया है कि उसे अपने खजाने के इंतजाम और बढ़ते राजकोषीय असंतुलन पर ध्यान देना होगा।

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