एक तो इसका नाम ही बड़ा विचित्र है। समझ में नहीं आता कि कैसे उच्चारण करें। एआरएसएस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स। कंपनी के प्रवर्तक अग्रवाल बंधु हैं तो ए शायद वहां से आया होगा। राजेश अग्रवाल प्रबंध निदेशक हैं तो आर वहां से आया होगा, सुबाष अग्रवाल चेयरमैन हैं तो एक एस वहां से आया होगा। सौमेंद्र पटनायक निदेशक (वित्त) हैं और कंपनी से शुरू से जुड़े हैं तो हो सकता है दूसरा एस वहां से आ गया हो। खैर, हम इसे अर्स इंफ्रा कहेंगे। हां, इनमें से राजेश 37 साल, सौमेंद्र 39 साल और सुबास 45 साल के ही हैं। साल 2000 में बनी कंपनी है। दावा है कि अब तक 80 प्रोजेक्ट पूरे कर डाले हैं। वेबसाइट पर जैसी तस्वीरें हैं उसे देखकर लगता है कि जैसे दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर इसी ने बनाया हो।
खैर, यह बातें बाद में। पहले यह कि इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल एनएसई (कोड – ARSSINFRA) में 11.06 फीसदी बढ़कर 370.40 रुपए और बीएसई (कोड – 533163) में 10.77 फीसदी बढ़कर 370.75 रुपए पर बंद हुआ है। यह वही शेयर है जिसने इसी हफ्ते सोमवार 12 सितंबर को 278.60 रुपए पर 52 हफ्ते की तलहटी पकड़ी थी। उसके बाद तीन दिन में ही वहां से यह 33 फीसदी बढ़ गया। कमाल है जी। इतनी तेजी अचानक कहां से आ गई? जिस बाजार ने इसे पिछले साल 27 सितंबर 2010 को हासिल 1331.70 रुपए की चोटी से 79 फीसदी नीचे पटक दिया हो, उसे अचानक तीन दिन में 33 फीसदी चढ़ानेवाले निवेशक आखिर कहां से मिल गए? आइए देखते हैं।
12 सितंबर को जब अर्स का शेयर फर्श पर पहुंचा था, तब बीएसई में इसके 1.84 लाख शेयरों की ट्रेडिंग हुई थी जिसमें से 12.74 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। इससे पिछले कारोबारी दिन 9 सितंबर को 74,191 शेयरों के वोल्यूम में से 36.38 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। बाद में 13 सितंबर को इसके 16.10 लाख शेयरों के सौदे हुए जिसमें से केवल 4.86 फीसदी ही डिलीवरी के लिए थे। इसी तरह 14 सितंबर को ट्रेड हुए 4.44 लाख शेयरों में से 8.29 फीसदी और 15 सितंबर यानी कल बीएसई में ट्रेड हुए 13.73 लाख शेयरों में से 4.78 फीसदी डिलीवरी के लिए थे।
एनएसई में भी यही चक्र-दुष्चक्र चलता रहा। वहां 12 सितंबर को ट्रेड हुए कंपनी के 9.73 लाख शेयरों में से 33.60 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। लेकिन अगले तीन दिनों में डिलीवरी की मात्रा घटती गई। 13 सितंबर को 29.46 लाख शेयरों में से 6.10 फीसदी, 14 सितंबर को 11.60 लाख में से 8.70 फीसदी और 15 सितंबर को एक्सचेंज में ट्रेड़ हुए 23.18 लाख शेयरों में से 7.70 फीसदी ही डिलीवरी के लिए थे। साफ है कि शेयर के एकदम धराशाई हो जाने के बाद कुछ खिलाड़ियों को सट्टा-बयाना मिला होगा कि फौरन इसे संभालो। और, वे जुट गए। लाखों शेयर अपने ही एक हाथ से दूसरे हाथ में डालते रहे। वोल्यूम इतना खड़ा कर दिया कि उसकी चमक में कुछ निवेशक भी आ गए होंगे।
हालांकि आंकड़ों में देखें तो कंपनी की हालत भी दुरुस्त लगती है। वित्त वर्ष 2010-11 में उसने 1249.01 करोड़ रुपए की आय पर 112.17 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका सालाना ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 75.57 रुपए था। इस साल जून की पहली तिमाही में उसकी आय 22.98 फीसदी बढ़कर 438.41 करोड़ और शुद्ध लाभ 13.51 फीसदी बढ़कर 38.65 करोड़ रुपए हो गया। स्टैंड एलोन रूप से कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस अभी 78.68 रुपए है और इस तरह उसका शेयर मात्र 4.71 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। उसके शेयर का बाजार भाव 370.75 रुपए है तो बुक वैल्यू ही 302.16 रुपए है।
ब्रोकरेज फर्म एडेलवाइस के डाटाबेस के मुताबिक पिछले तीन सालों में कंपनी की आय 58.63 फीसदी और शुद्ध लाभ 60.55 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। उसका इक्विटी पर रिटर्न 28.53 फीसदी है। नकारात्मक पहलू यह है कि कंपनी का ऋण-इक्विटी अनुपात 1.76 है। उस पर मार्च 2011 तक 939.82 करोड़ रुपए का कर्ज था।
कंपनी की इक्विटी मात्र 14.84 करोड़ रुपए है। इसका बाजार पूंजीकरण 550 करोड़ रुपए है तो इसे स्मॉल कैप में गिना जाता है। इक्विटी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 55.04 फीसदी है, जबकि एफआईआई के पास इसके 0.64 फीसदी और डीआआई के पास 0.27 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 16,163 है। इसमें से प्रवर्तकों से भिन्न दस बड़े शेयरधारकों के पास उसके 17.78 फीसदी शेयर हैं। इनमें देवेन जे मेहता (3.50 फीसदी), डी सत्यमूर्ति (2.16 फीसदी), रेलिगेयर फिनवेस्ट (2.10 फीसदी), ज्योति जितेंद्र मेहता (1.68 फीसदी), जितेंद्र जगन्नाथ मेहता (1.28 फीसदी), बलराम चैनराय (1.36 फीसदी) और मनमोहन दामाणी (1.16 फीसदी) प्रमुख हैं।
कंपनी में काफी तामाझामा नजर आता है। कमानी जानती है तो शेयर को नचाने का गुर भी आजमा लेती है। ऐसे में जो लोग जोखिम उठाना चाहें तो वे इसमें निवेश कर सकते हैं। लेकिन कमजोर दिल वालों को इससे दूर ही रहना चाहिए।
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