मार्च में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति के 6.70 फीसदी रहने का भरोसा था। लेकिन वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की तरफ से सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च में मुद्रास्फीति की दर 6.89 फीसदी रही है। फरवरी महीने में इसकी दर 6.95 फीसदी थी। इस तरह इसमें कमी तो आई है। लेकिन जितनी उम्मीद थी, उतनी नहीं। फिर भी भरोसा है कि रिजर्व बैंक सालाना मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में चौथाई फीसदी कमी कर देगा। यही वजह है कि कॉरपोरेट व निवेशक समुदाय के मूड को दर्शानेवाले शेयर बाजार में मुद्रास्फीति के आंकड़ों के आने के बाद रंगत आ गई।
अगर रिजर्व बैंक, कल मंगलवार को रेपो दर (रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को दिए जानेवाले उधार की सालाना ब्याज ब्याज दर) में कमी करता है तो वह मई 2009 के बाद पहली बार ऐसा करेगा। अभी रेपो दर 8.50 फीसदी है। इसे घटाकर 8.25 फीसदी कर दिए जाने की संभावना है। कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि रिजर्व बैंक सीआरआर को भी 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी पर ला सकता है। वैसे, इसकी गुंजाइश कम लगती है क्योंकि अभी हाल तक रिजर्व बैंक से रोज़ 1.50 लाख रुपए तक उधार लेनेवाले बैंक अब 75-80 हज़ार रुपए ही उठा रहे हैं। जैसे, आज सोमवार को उन्होंने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत रिजर्व बैंक से 79,100 करोड़ रुपए उधार लिए हैं। रिजर्व बैंक इस साल जनवरी से लेकर अब सीआरआर में 1.25 फीसदी (0.75 + 0.50 फीसदी) की कमी कर चुका है।
आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज प्राइमरी डीलरशिप में कार्यरत अर्थशास्त्री ए प्रसन्ना कहते हैं, “रिजर्व बैंक के लिए जो चीज मायने रखती बै, वह है मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के विकास के आंकड़े क्योंकि नीतिगत दरें मांग के पक्ष को प्रभावित करती हैं। इसलिए हमारा मानना है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें घटा देगा।” बता दें कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के तीन-चौथाई से ज्यादा योगदान वाला औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) फरवरी में केवल 4.1 फीसदी बढ़ा है, जबकि जनवरी में इसके बढ़ने का संशोधित आंकड़ा 1.14 फीसदी का रहा है।
आंकड़ों के मुताबिक थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में 64.97 फीसदी का वजन रखनेवाले मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादों की मुद्रास्फीति की दर 4.87 फीसदी पर आ गई है। फरवरी में यह 5.75 फीसदी थी। हालांकि सूचकांक में 14.34 फीसदी का योगदान रखनेवाले खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति फरवरी के 6.07 फीसदी से बढ़कर मार्च में 9.94 फीसदी हो गई है। इसी तरह 14.91 फीसदी के योगदान वाले ईंधन वर्ग की मुद्रास्फीति भी इस दौरान 12.83 फीसदी से गिरकर 10.41 फीसदी पर आने के बावजूद ऊंची बनी हुई है। लेकिन खाद्य व ईंधन दोनों ही वर्ग रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के बजाय मांग व सप्लाई और अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति के हिसाब से चलते हैं। इसलिए रिजर्व बैंक अपने फैसले मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की स्थिति के हिसाब से करता है।
निजी क्षेत्र के यस बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री सुभदा राव का कहना है, “आनेवाले महीनों में प्राथमिक व ईंधन मुद्रास्फीति बढ़ती जाएगी। इसकी वजह सीजनल है। साथ ही कच्चे तेल के दाम अधूरे समायोजन को ठीक करने के कारण बढ़ेगे।” पूरी उन्मीद है कि जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय बाजार से समरूपता लाने के लिए पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाए जाएंगे। बजट में बढ़ाए गए उत्पाद शुल्क और सेवा कर से भी महंगाई का बढ़ना तय है। मानसून के सामान्य रहने पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है।
ऐसे में कोटक महिंद्रा बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री इंद्रनील पान मानते हैं कि रिजर्व बैंक ब्याज दर में 0.25 फीसदी कटौती तो कर सकता है। लेकिन, “हमें इस बात को लेकर हिचक है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में आक्रामक अंदाज में कोई ज्यादा कमी करेगा। उसके आगामी कदम मुद्रास्फीति की चाल-ढाल से तय होंगे।”