देश में क्रेडिट व डेबिट कार्ड पर अमेरिकी कंपनियों – वीसा और मास्टरकार्ड के एकाधिकार को खत्म करने की तैयारी काफी आगे बढ़ गई है। शुक्रवार को रिजर्व बैंक के मुख्य महाप्रबंधक (भुगतान व समायोजन विभाग) जी पद्मनाभन ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि भारत का अपना इंडियापे कार्ड अगले 18 से 24 महीनों में काम करना शुरू कर देगा। यह खबर आज देश के सबसे बड़े अंग्रेजी आर्थिक अखबार ने लीड के रूप में लगाई है। लेकिन आपको बता दूं कि हिंदी के इस सामान्य आर्थिक पत्रकार ने यह खबर करीब एक साल पहले पेश कर दी थी।
उस समय यह संवाददाता बिजनेस भास्कर का मुंबई ब्यूरो चीफ हुआ करता था। बिजनेस भास्कर ने इस खबर को बहुत कम आंका और भीतर के पेज में कहीं कोने में लगाकर औपचारिकता पूरी कर दी। इसलिए पूरी खबर 22 अगस्त 2009 को हिंदी के प्रमुख समाचार व विचार पोर्टल विस्फोट को भेजी गई और 23 अगस्त 2009 को वहां पर यह खबर प्रमुखता से छपी। उसके प्रमुख अंश पेश कर रहा हूं। बाकी पुष्टि के लिए आप पूरी खबर विस्फोट (विस्फोट डॉट कॉम) पर देख सकते हैं…
इस समय देश में 16.71 करोड़ क्रेडिट व डेबिट कार्ड है, जिनमें से 3 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं और बाकी 13.71 करोड़ डेबिट कार्ड हैं। इन कार्डों से होनेवाले 97 फीसदी सौदे घरेलू ही होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि इनसे की गई हर लेन-देन और खरीद-फरोख्त का ब्यौरा पल-पल दो अमेरिकी कंपनियों वीसा और मास्टरकार्ड के रिकॉर्ड में दर्ज होता रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के हर क्रेडिट या डेबिट कार्ड को पेमेंट सिस्टम की सेवा यही कंपनियां मुहैया कराती हैं। थोड़ा-सा भी संदेह हो तो देख लीजिए, आपके कार्ड के कोने में भी इन्हीं का ठप्पा लगा होगा।
वैसे, देर से ही सही, देश में क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के सौदों पर इन अमेरिकी कार्ड सेवाप्रदाता कंपनियों के एकाधिकार को खत्म करने की तैयारियां तेज हो गई हैं और कुछ साल के भीतर भारत का अपना कार्ड – इंडिया पे-कार्ड के नाम से जारी कर दिया जाएगा। तब देश के अधिकांश डेबिट व क्रेडिट कार्डों पर वीसा या मास्टरकार्ड का नहीं, इंडिया पे-कार्ड का ठप्पा लगा रहेगा। इस पर अमल का जिम्मा अक्टूबर 2008 में कंपनी अधिनियम की धारा-25 के तहत गठित नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) को सौंपा गया है। इस कॉरपोरेशन का प्रवर्तन भारतीय बैंकों के शीर्ष संगठन इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) ने किया है।
आईबीए के एक सूत्र ने बताया कि भविष्य में देश में रिटेल भुगतान व निपटान का सारा कामकाज एनपीसीआई ही देखेगा। अभी यह सारा काम खुद रिजर्व बैंक के अधीन है। एनपीसीआई हालांकि स्वतंत्र रूप से काम करेगा, लेकिन यह पूरी तरह भारतीय रिजर्व बैंक के रेगुलेशन से बंधा होगा। इस कॉरपोरेशन में 51 फीसदी इक्विटी/मालिकाना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बाकी 49 फीसदी इक्विटी निजी बैंकों की होगी। उन्होंने बताया कि कॉरपोरेशन के निदेशक बोर्ड में इनफोसिस टेक्नोलॉजीज के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति को शामिल कर लिया गया है। इसलिए इंडिया पे-कार्ड को लाने की प्रक्रिया अब तेज हो सकती है।
एनपीसीआई के एक शेयरधारक बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के क्रेडिट कार्ड विभाग के प्रमुख पी के बंसल बताते हैं कि अभी देश में क्रेडिट व डेबिट कार्ड के 97 फीसदी सौदे घरेलू होते हैं। ऐसे में अमेरिकी कंपनियों वीसा व मास्टरकार्ड के जरिए इन्हें रूट करने का कोई तुक नहीं है। बाकी बचे तीन फीसदी सौदों के लिए भारतीय नागरिक विदेशी कार्ड ले सकते हैं। दूसरे, अभी हमारे ग्राहकों का सारा डाटा अमेरिका में चला जाता है। इसलिए इंडिया पे-कार्ड का आना बहुत जरूरी है। इससे वे 200-250 करोड़ रुपए भी बच जाएंगे जो भारतीय बैंक वीसा व मास्टरकार्ड को फीस के बतौर देते हैं।
विकासशील देशों में मलयेशिया और चीन पहले ही अपना देशी कार्ड ला चुके हैं। चीन ने तो अपने यहां वीसा व मास्टरकार्ड को घुसने ही नहीं दिया था। उसने साल 2002 में अपना यूनियन पे-कार्ड जारी किया। आईबीए के अधिकारी का कहना है कि चीन को अपना कार्ड लाने में दस साल लग गए, जबकि वहां वीसा या मास्टरकार्ड नहीं था। इसलिए भारत अगर अपना कार्ड दो साल में ले आता है तो इसे उसकी तेजी ही माना जाना चाहिए।