सपने, नेता और लोग

जब अकेला नेता सपने देखता है और लोग उसे हासिल करने में मदद करते हैं तो हिटलरशाही पैदा होने का खतरा रहता है। जब लोग सपने देखते हैं और नेता उसे हासिल करने में मदद करता है तो लोकशाही आती है।

3 Comments

  1. आप को सब्सक्राइव किया है। पढ़ता रहता हूँ लेकिन आज अपने को रोक नहीं पाया। यह तो
    सूक्ति है।
    लोग सपने कब देखेंगे? कैसे देखेंगे??

  2. बहुत सही बात है। लोगों को सपना देखना होगा।

  3. गिरिजेश भाई, लोग सपने देखते है, देख रहे हैं घरों मे, दफ्तरों में, फैक्ट्रियों में, गांव-गिरांव में और राजनीतिक पार्टियों में। लेकिन हर जगह उन्हें कलपुर्जे की तरह, अनुयायी या सेवक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। बॉस अपने नीचे वाले से नहीं पूछता कि अमुक मसले पर तुम क्या सोचते हो। मुझे लगता है कि हम जहां हैं, वहीं से साथ वालों के सपनों व विचारों को तरजीह देना शुरू कर दें तो बाकी काम बाजार अर्थव्यवस्था खुद कर लेगी। हां, उस पर अंकुश जरूरी है। नियंत्रित बाजार अर्थव्यवस्था कितनी तेजी से प्रगति कर सकती है, यह हम 1978 के बाद से चीन में देख रहे हैं।
    दिक्कत यह है कि अपने यहां सामंतवादी सोच से निर्णायक विच्छेद नहीं हुआ है। इसीलिए ज्यादातर लोग कुर्सी पकड़कर, कोई न कोई ठेहा पकड़कर निश्चिंत हो जाना चाहते हैं। कुर्सी का काम पहले रियासत या जमींदारी किया करती थी। अपने काम और योग्यता के बल पर आगे बढ़ने की मानसिकता कमजोर है। नेटवर्किंग अपरिहार्य है, लेकिन सिर्फ उसी पर जोर देने पर काम दलाली का हो जाता है। इंसान के सृजनात्मक स्वरूप को न देखकर उसे ‘परजा’ मानने की सोच हर किसी के भीतर से ढूंढ-ढूंढकर खत्म करनी होगी और पुरानी सोच वालों से दो-दो हाथ भी करने पड़ेंगे। इसी में हमारा भला है और देश व हमारी अर्थव्यवस्था का भी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *