भ्रष्टाचार विरोधी संधि पर लगी छह साल बाद मुहर

भारत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र समझौते या कनवेंशन का अनुमोदन कर दिया है। अनुमोदन की यह प्रक्रिया सितंबर 2010 से ही चल रही थी और अब इसे मंत्रियों के एक समूह की देखरेख में पूरा कर दिया गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार को काबुल यात्रा पर रवाना होने से पहले जारी एक बयान में यह जानकारी दी है।

बयान में कहा गया है, “भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र समझौते को लागू करने से भ्रष्टाचार से लड़ने के प्रति हमारे सरकार की प्रतिबद्धता और इसके लिए सख्त प्रशासनिक व वैधानिक सुधारों के साथ ही भ्रष्टाचार के जरिए अवैध तरीके से जुटाई गई संपत्‍ति की जब्‍ती के लिए हमारी विधि-प्रवर्तन संस्‍थाओं को सक्षम बनाने की प्रतिबद्धता की पुष्‍टि हुई है।’’

बता दें कि भारत ने छह सालों से भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र समझौते को हस्ताक्षर करने के बावजूद अभी तक उनका अनुमोदन नहीं किया था। यह समझौता संयुक्त राष्ट्र आमसभा ने 31 अकटूबर 2003 को न्यूयॉर्क में स्वीकार किया था। इसका अनुमोदन दुनिया के 140 देश कर चुके हैं। लेकिन भारत ने 2005 में इस पर हस्ताक्षर करने के बावजूद संसद से इसका अनुमोदन नहीं कराया था। असल में किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद उसे देश की संसद से मंजूर कराना पड़ता है। तभी उसका लाभ देश को मिल पाता है।

अब इस समझौते के अनुमोदन के बाद भारत सरकार को विदेशी बैंकों में रखे गए देश के काले धन को लाने में ज्यादा सहूलियत हो जाएगी। असल में इस समझौते के प्रावधान तो सरकारी ही नहीं, निजी क्षेत्र तक के भ्रष्टाचार की भी धरपकड़ करते हैं। इसके तहत भ्रष्टाचार में जिस दौलत का नुकसान होता है, उसे फिर से हासिल करना मौलिक सिद्धांत है। इसकी धारा 51 में प्रावधान है कि जिस देश की दौलत विदेश में भ्रष्ट तरीके से लाई गई है, उसे इसे वापस कर दिया जाएगा। समझौते में चुनाव प्रचार और राजनीतिक पार्टियों में पारदर्शिता लाने के भी उपाय हैं।

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