प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में हर तरफ फैले भ्रष्टाचार को आर्थिक उदारीकरण व सुधारों का नतीजा मानने के बजाय नैतिक ताने-बाने से जुड़ी समस्या करार दिया है। लेकिन आईआईटी खड़गपुर के छात्रों ने उनके हाथ से डिग्री लेने से इनकार कर खुद उनकी नैतिकता पर सवालिया निशान लगा दिया है।
प्रधानमंत्री ने सोमवार को कोलकाता में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार आम आदमी के रोजमर्रा के जीवन के लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन केवल लोकपाल कानून से इस चुनौती का मुकाबला संभव नहीं है। इससे निबटने के लिए न्यायिक सुधार, प्रशासनिक तौर तरीकों में बदलाव, नियामक संस्थाओं को मजबूत बनाना और राजनीतिक पार्टियों व चुनावों की फंडिंग की पर भी ध्यान देना जरूरी है।
वहीं दूसरी तरफ मनमोहन सिंह की इन बातों की विश्वसनीयता खत्म होती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री को आईआईटी खड़कपुर के दीक्षांत समारोह में डिग्रियां बांटनी थीं। लेकिन अण्णा के आंदोलन का साथ दे रहे वहां के कई छात्रों में प्रधानममत्री के हाथ से डिग्री लेने से इनकार कर दिया है। इनमें बी-टेक से लेकर एम-टेक तक के छात्र शामिल हैं। एम-टेक स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के छात्र शशि शेखर सिंह का कहना था कि मैं पीएम की बजाय अण्णा हज़ारे के किसी समर्थक से डिग्री लेना ज्यादा पसंद करूंगा।
रितेश नाम के एक अन्य आईआईटी छात्र को आज डिग्री मिलनी थी। लेकिन उसने कहा कि हम इस कार्यक्रम में नहीं जा रहे क्योंकि ये व्यवस्था में गड़बड़ है। इलेक्ट्रॉनिक्स में एम टेक के छात्र चंद्रकुमार पटेल और उसके साथियों ने कहा कि वे दीक्षांत समारोह में शामिल तो होंगे लेकिन वहां ‘मैं अन्ना हूं’ की गांधी टोपी पहनकर बैठेंगे। बता दें कि अण्णा के सहयोगी अरविंद केजरीवाल से आईआईटी खड़गपुर से ही केमिकल इंजीनियरिंग कर रखी है।
इससे पहले आईआईएम, कोलकाता में प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा, “मैं समझता हूं कि देश में सही सोच-समझ रखनेवाले सभी लोग भ्रष्टाचार के सभी रूपों से मुकाबले की जरूरत को लेकर सहमत हैं। लेकिन मुझे लगता है कि इस लक्ष्य की जटिलताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा। पिछले हफ्ते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मैंने लाल किले से अपने संबोधन में कहा था कि जादू की ऐसी कोई छड़ी नहीं है जो एक झटके में इस समस्या का समाधान कर दे। इस समस्या का कोई एक समाधान नहीं है। हमें बहुत से मोर्चो पर काम करना होगा।”
प्रधानमंत्री का कहना था कि वे लोकपाल के किसी भी संस्करण पर बातचीत के लिए तैयार हैं, चाहे वो जनलोकपाल बिल ही क्यों न हो। उन्होंने कहा, “हम सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार हैं। एक संस्थान के रूप में लोकपाल की स्थापना से निश्चित तौर पर सहायता मिलेगी। लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं हो सकता। हम सभी मुद्दों पर तर्कसंगत बहस करने के लिए तैयार हैं।’’
असल में पिछले सात दिनों से अनशन कर रहे अण्णा हजारे को देश भर से मिले अपार जनसमर्थन से सरकार बुरी तरह हिल चुकी है। शायद इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री ने टीम अण्णा से सुलह की ओर खुद एक क़दम बढ़ाया है। हालांकि अण्णा के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के पहले दिए प्रस्ताव को ख़ारिज कर चुके हैं, जिसमें मनमोहन सिंह ने इसी तरह की बात की थी।