गुवाहाटी के आर्कबिशप थॉमस मेनाम परामपिल को पूर्वोत्तर के जातीय समुदायों में शांति लाने के प्रयास को मान्यता देते हुए प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है।
आर्कबिशप का नाम इटली की लोकप्रिय पत्रिका ‘इल बोलेतिनो सालेसिआनो’ ने नामांकित किया है। पत्रिका ने जून महीने के अंक में मेनाम परामपिल पर चार पन्ने की स्टोरी प्रकाशित की है। उसने इसका शीषर्क दिया है – ए बिशप फॉर नोबेल प्राइज।
उधर खुद मेनाम परामपिल का कहना है, ‘‘मैंने नामांकन की अपेक्षा नहीं की थी। लेकिन इसने मुझे अभिभूत कर दिया। पिछले महीने मेरी रोम यात्रा के दौरान मुझे इस तरह की घटनाक्रम की संभावना के बारे में बताया गया था।’’ आर्कबिशप ने कहा, ‘‘शांति अभियान के संचालन के लिए पुरस्कार कोई मतलब नहीं रखता है। मैं शांति के लिए अपने मिशन को जारी रखूंगा, चाहे मुझे पुरस्कार या मान्यता मिले या न मिले।’’
अनिलजी, ज़रा बताएँगे कि यह ख़बर आपको किस एजंसी या स्रोत से मिली? हमारे देश में अंग्रेज़ी-विश्व को ही विदेश माना जाता है, सीधे अंग्रेज़ीतर भाषा के स्रोत कोई जेएनयू जैसा विवि या दूतावास ही होते हैं। यह सवाल पूछने की क्या ज़रूरत है यह आप इस छोटे-से लेख को पढ़कर समझ सकते हैं—
http://blog.sureshchiplunkar.com/2011/06/nobel-nomination-for-archbishop.html
धन्यवाद। मुझे नहीं पता था कि इन महानुभाव के साथ इतना लफड़ा है। मुझे तो लगा कि यह देश के गौरव की बात है तो मैंने यह खबर लगा दी। अगर देश व अवाम के साथ घात की बात है तो निश्चित रूप से इससे दूर ही रहना बेहतर होगा। वाकई सोचने की बात है कि इटली की कोई पत्रिका किसी को कैसे नोबेल के लिए नामांकित कर सकती है। यह सवाल उठाने के लिए सुरेश जी का भी शुक्रिया।