देश जबरदस्त विरोधाभास से जूझ रहा है। खाद्यान्नों के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर थमने का नाम नहीं ले रही। 16 जुलाई को खत्म हफ्ते में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति नवंबर 2009 से बाद के सबसे न्यूनतम स्तर 7.33 फीसदी पर थी। लेकिन 23 जुलाई को खत्म हफ्ते मे यह फिर से बढ़कर 8.04 फीसदी पर पहुंच गई है। वैसे साल भर पहले तो और भी भयंकर स्थिति थी क्योंकि तब खाद्य मुद्रास्फीति की दर 16.27 फीसदी थी।
गुरूवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 23 जुलाई को खत्म सप्ताह में साल भर पहले की तुलना में प्याज के दाम 26.36 फीसदी और फल के दाम 15.97 फीसदी बढ़े हैं। इसी दौरान दूध की कीमत 10.26 फीसद बढ़ी है, जबकि सब्जियां 10.20 फीसदी महंगी हुई हैं। इसके अलावा अनाज 5.13 फीसदी, आलू 7.85 फीसदी और अंडे, मांस व मछली 6.66 फीसदी महंगे हुए हैं। हालांकि इस अवधि में दालों के दाम 7.01 फीसदी नीचे आए हैं।
सरकार का अपना तर्क है। उसका कहना है कि चूंकि लोगों की क्रय-शक्ति पहले से बेहतर हुई है। वे प्रोटीन-युक्त चीजें और फल वगैरह ज्यादा खाने लगे हैं। इसलिए इनके दाम बढ़ रहे हैं। लेकिन इनकी सप्लाई बढ़ाने के बारे में सरकार की तरफ से कुछ खास नहीं किया जा रहा है।
कुल मिलाकर 23 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान प्राथमिक उत्पादों की कीमत 10.99 फीसदी बढ़ी जो पिछले सप्ताह 10.49 फीसदी थी। थोक मूल्य सूचकांक में प्राथमिक उत्पादों की हिस्सेदारी 20.12 फीसदी है। हालांकि उक्त सप्ताह में गैर-खाद्य उत्पादों की मंहगाई दर घटकर 15.60 फीसदी रह गई जो पिछले सप्ताह 16.05 फीसदी थी। गैर-खाद्य उत्पादों में फाइबर, तिलहन और खनिज पदार्थ शामिल हैं।
इस दौरान ईधन और ऊर्जा क्षेत्र की महंगाई दर पिछले सप्ताह के बराबर 12.12 फीसद रही है क्योंकि एलपीजी से लेकर डीजल व पेट्रोल के दाम वैसे भी हफ्ते भर में अमूमन नहीं बदलते। फिलहाल महंगाई सरकार व रिजर्व बैंक का सिरदर्द बनी हुई है। सकल मुद्रास्फीति की दर जून माह में 9.44 फीसदी रही है। इस पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक मार्च 2010 से ब्याज दरों में 11 बार बढ़ोतरी कर चुका है। लेकिन इसका कोई नतीजा होता नजर नहीं आ रहा।
इसी हफ्ते प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अक्टूबर तक मुद्रास्फीति करीब नौ फीसदी के ऊंचे स्तर पर बने रहेगी। लेकिन नवंबर के बाद यह कम होना शुरू हो जाएगी और मार्च 2012 तक 6.5 फीसदी पर पहुंच जाएगी।