शेयर बाजार में एफआईआई निवेश घट कर रह जाएगा पहले से आधा

जो लोग विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की पूंजी के दम पर शेयर बाजार में तेजी की आस लगाए हुए हैं, उनके लिए बुरी खबर है। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में देश में एफआईआई निवेश घटकर मात्र 14 अरब डॉलर रह जाएगा। यह पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में आए 30 अरब डॉलर के एफआईआई निवेश का आधा भी नहीं है। यह अनुमान और किसी का नहीं, खुद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) का है।

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली परिषद ने सोमवार को 2011-12 के आर्थिक परिदृश्य पर जारी रिपोर्ट में कहा है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय हालात को देखते हुए नहीं लगता है कि इक्विटी व ऋण वगैरह में आनेवाला एफआईआई निवेश पिछले साल का मुकाबला कर पाएगा। वैसे भी, सेबी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में जून तक की पहली तिमाही में आया एफआईआई निवेश मात्र 1.2 अरब डॉलर रहा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 2.3 अरब डॉलर रहा था।

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने माना है कि 2011-12 में देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़कर 35 अरब डॉलर हो जाएगा, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में यह 23 अरब डॉलर ही रहा था। इस तरह एफडीआई इस बार 52.17 फीसदी ज्यादा रहेगा। परिषद का कहना है कि इस साल अप्रैल-मई में एफडीआई 77 फीसदी बढ़कर 4.4 अरब डॉलर हो गया है। इस गति को आगे बरकरार रख पाना मुश्किल है। फिर भी एफडीआई में काफी वृद्धि होगी।

परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘‘आर्थिक वृद्धि की जरूरतों को देखते हुए व्यापार घाटे और चालू खाते के घाटे को कम रखना अपरिहार्य है। इसके लिए विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत है। चालू खाते के घाटे को जीडीपी के 2.5 फीसदी से नीचे रखा जाना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में विदेश निवेश को उदार बनाया गया है लेकिन कुछ मुद्दे हैं, जिनके हल से देश में बड़े पैमाने पर निवेश आएगा। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अनुमान है कि चालू खाते का घाटा जीडीपी का 2.7 फीसदी (54 अरब डॉलर) रहेगा, जबकि बीते वित्त वर्ष 2010-11 में यह जीडीपी का 2.6 फीसदी (44.3 अरब डॉलर) रहा था।

परिषद ने चालू वित्त वर्ष 2011-12 में आर्थिक विकास दर का अनुमान घटाकर 9 फीसदी से 8.2 फीसदी कर दिया है। उसका कहना है कि हालांकि यह दर पिछले साल के 8.5 फीसदी के मुकाबले कम रहेगी, लेकिन मौजूदा वैश्विक हालात को देखते हुए इसको सम्मानजनक और बेहतर माना जाना चाहिए। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि निकट भविष्य में वैश्विक आर्थिक और वित्तीय स्थिति में सुधार की उम्मीद कम है। इसका घरेलू अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। चालू वित्त वर्ष 2011-12  की आर्थिक वृद्धि के लिए रिजर्व बैंक का अनुमान 8 फीसदी का है।

परिषद का कहना है कि इस साल औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 7.1 फीसदी रहेगी, जबकि पिछले साल यह 7.9 फीसदी थी। कृषि क्षेत्र की विकास दर जहां पिछले साल 6.6 फीसदी दर्ज की गई है, वहीं इस साल इसके घटकर 3 फीसदी पर आ जाने का अनुमान है। परिषद की राय में इस साल सरकार के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.7 फीसदी लक्ष्य तक सीमित रख पाना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।

मुद्रास्फीति के मामले में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् ने कहा है कि मार्च 2012 तक यह घटकर 6.5 फीसदी रह जाएगी। लेकिन अक्टूबर तक इसके 9 फीसदी के ऊंचे स्तर पर बने रहने की उम्मीद है। परिषद के अनुसार, नवंबर से मुद्रास्फीति में कुछ राहत मिलनी शुरू होगी और मार्च 2012 तक यह 6.5 फीसदी तक नीचे आ जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *