चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अब तक हर महीने कुलांचे मारकर बढ़ रहे निर्यात की रफ्तार अक्टूबर में अचानक थम गई है। वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से गुरुवार को जारी आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर में हमारा निर्यात 19.87 अरब डॉलर रहा है जो अक्टूबर 2010 में हुए 17.93 अरब डॉलर से मात्र 10.82 फीसदी ज्यादा है। इससे पहले हमारे निर्यात के बढ़ने की दर अप्रैल में 34.42 फीसदी, मई में 56.93 फीसदी, जून में 46.45 फीसदी, जुलाई में 81.79 फीसदी, अगस्त में 44.25 फीसदी और सितंबर में 36.36 फीसदी रही है।
पहले छह महीनों की तेज बढ़त का ही नतीजा है कि अक्टूबर तक के सात महीनों में हमारे निर्यात की वृद्धि दर 45.96 फीसदी रही है। अप्रैल-अक्टूबर 2010 में हमारा निर्यात 123.17 अरब डॉलर था, जबकि अप्रैल-अक्टूबर 2011 के दौरान यह 179.78 अरब डॉलर हो गया।
अक्टूबर 2011 में देश का आयात 21.72 फीसदी बढ़कर 39.51 अरब डॉलर हो गया। इस तरह अक्टूबर का व्यापार घाटा 19.64 अरब डॉलर रहा है जो साल पर पहले की तुलना में 35.16 फीसदी ज्यादा है। इस साल अप्रैल से अक्टूबर तक देश में हुआ आयात 30.96 फीसदी बढ़कर 273.47 अरब डॉलर रहा है। दूसरे शब्दों में चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में देश का व्यापार घाटा 93.69 अरब डॉलर रहा है। यह साल भर पहले की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा है।
वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात घटने की तोहमत अमेरिका व यूरोपीय देशों में चल रही अनिश्चितता पर मढ़ी है। लेकिन उसने यह साफ नहीं किया कि इसी अनिश्चितता के बाद पहले सात महीनों में हमारा निर्यात कैसे लगातार बढ़ता जा रहा है। असल में माना जा रहा है कि इधर ओवर-इनवॉयसिंग के जरिए निर्यात के माध्यम से काले धन को सफेद बनाने का काम किया गया है।
मंत्रालय ने निर्यात वृद्धि में आई गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही में भी गिरावट का रुख जारी रह सकता है। इस स्थिति के चलते वर्ष की समाप्ति तक देश का व्यापार घाटा 150 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। सात महीनों में यह 93.69 अरब डॉलर तो हो ही चुका है।