हम अक्सर शेयरों के उठने-गिरने की माया में ऐसे खो जाते हैं कि उनसे जुड़ी कंपनियों के प्रबंधन की तरफ देखते ही नहीं। आज के दौर में कहीं ज्यादा ज़रूरी हो गया है कि हम ऐसी ही कंपनियों को निवेश के लिए चुने, जिनका प्रबंधन शेयरधारकों के लिए बराबर मूल्य-सृजन करता रहा है। हाल में दुनिया के सफलतम निवेशक वॉरेन बफेट ने अच्छे प्रबंधन के कुछ आम मानदंड बताए हैं। उसी प्रबंधन पर भरोसा करें जो अपनीऔरऔर भी

सबसे बड़ी चुनौती है कि भारत के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को जगाने की। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अमेरिका, जापान व जर्मनी की संयुक्त हिस्सेदारी 44% थी, जबकि चीन की 6% और भारत की 2% थी। उसका अनुमान है कि साल 2030 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अकेले चीन की हिस्सेदारी 45% तक पहुंच जाएगी, जबकि भारत 5% के पार नहीं जा जाएगा। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्रऔरऔर भी

विदेशी निवेशकों के भारत छोड़कर चीन की तरफ भागने की तीन खास वजहें बताई जा रही हैं। एक, अमेरिका जहां चीन से मोलतोल करने की मुद्रा में है, वहीं वो भारत पर एकतरफा दबाव बनाकर अपनी शर्तें मनवा रहा है। उसे पता है कि भारत कहीं से मोलतोल करने की स्थिति में नहीं है। दूसरे भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर होता जा रहा है। विदेशी निवेशकों को लगता है कि भारतीय शेयर बाज़ार से मुनाफाऔरऔर भी

भारत का मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र नहीं बढ़ेगा तो यहां के उद्योग-धंधे कैसे बढ़ेगे? उद्योग-धंधे नहीं बढ़ेंगे तो कॉरपोरेट क्षेत्र कैसे बढ़ेगा? कॉरपोरेट क्षेत्र नहीं बढ़ेगा तो शेयर बाज़ार कैसे बढ़ सकता है? भारत की विकासगाथा की इस ज़मीनी हकीकत ने विदेशी निवेशकों को हताश कर दिया है। केवल विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) ही नहीं, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करनेवाले भी अब भारत से बिदक कर भागने लगे हैं। उन्हें यकीन है कि जो सरकार भ्रष्टाचार के ज़रिए विश्वऔरऔर भी

बीएसई का सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी-50 सूचकांक 27 सितंबर 2024 के ऐतिहासिक शिखर से अब तक 15% से ज्यादा गिर चुके हैं। शेयर बाज़ार के इस तरह धड़ाम होने की एकमात्र वजह है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का पलायन। वे हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट ने 27 सितंबर 2024 से कल तक हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट से ₹2.36 लाख करोड़ निकाल चुके हैं। आखिर दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाऔरऔर भी