सबसे बड़ी चुनौती है कि भारत के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को जगाने की। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अमेरिका, जापान व जर्मनी की संयुक्त हिस्सेदारी 44% थी, जबकि चीन की 6% और भारत की 2% थी। उसका अनुमान है कि साल 2030 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अकेले चीन की हिस्सेदारी 45% तक पहुंच जाएगी, जबकि भारत 5% के पार नहीं जा जाएगा। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम का दूसरा चरण लॉन्च करते वक्त हांके जा रहे हैं कि जिस भारत को दुनिया अपना बैक-ऑफिस कहती है, वो आज ‘न्यू फैक्ट्री ऑफ द वर्ल्ड’ बन रहा है! वैसे, 10-11 सालों से विदेशी निवेशक और संस्थान मोदी के ऐसे दावे सुन-सुनकर पक चुके हैं। देश में भी ऐसे दावों की पोल खुल चुकी है। लेकिन आत्ममुग्ध मोदी और उनकी सरकार के चंगू-मंगू विकसित भारत के नारे की चासनी फेंटे जा रहे हैं। कभी पेट्रोलियम तेल व गैस के आयात पर निर्भर अमेरिका आज इनका निर्यातक बन चुका है। वहीं, भारत पूर्वोत्तर राज्यों में उपलब्ध शेल गैस अभी तक खोज नहीं पाया है। चीन ने लीथियम बैटरियों, ड्रोन, इलेक्ट्रिक वाहनों व सेमी-कंडक्टर के कच्चे माल से लेकर अंतिम उत्पाद में तक अपनी प्रभुता जमा ली हैं। वहीं, भारत में अभी अमृतकाल का बोल-वचन चल रहा है। काम के नाम पर लफ्फाज़ी। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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