सरकार गिरते रुपए की धार को कुंद करने की हरचंद कोशिश कर रही है। कहा जा रहा है कि डॉलर के मुकाबले भले ही रुपया कमज़ोर हो रहा हो, लेकिन उसकी वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (रीयल अफेक्टिव एक्सचेंज रेट या REER) अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है। रीर केवल डॉलर नहीं, बल्कि दुनिया के उन 40 देशों की मुद्राओं के सापेक्ष रुपए की विनिमय दरों का भारित औसत है जिनसे हमारा लगभग 88% सालाना आयात-निर्यात होताऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने रुपए को संभालने की पुरज़ोर कोशिश की। डॉलर के मुकाबले रुपया जमकर गिरना शुरू हुआ, उससे पहले सितंबर में उसने विदेशी मुद्रा के फॉरवर्ड बाज़ार में 14.58 अरब डॉलर बेचे थे। वहीं अक्टूबर में उसने फॉरवर्ड बाज़ार में 49.18 अरब डॉलर और स्पॉट बाजार में 9.27 अरब डॉलर बेचे। बता दें कि अप्रैल 2024 में रिजर्व बैंक ने स्पॉट बाज़ार से 13.24 अरब डॉलर खरीदे थे और फॉरवर्ड बाज़ार में मात्र 54 करोड़ डॉलरऔरऔर भी

सेवाओं का निर्यात ठंडा पड़ता गया। वैसे यह भी एक मिथ है कि भारत सेवाओं के निर्यात में तोप-तमंचा है। विश्व बैंक की रैंकिंग में प्रति व्यक्ति सेवा निर्यात में भारत 114 देशों में 89वें नंबर पर है और मलयेशिया, तुर्किए व थाईलैंड जैसे देशों से भी नीचे हैं। खैर, सेवाओं का निर्यात ठंडा पड़ने से देश में डॉलर का आना थम गया, जबकि निकलने की रफ्तार बढ़ गई तो रुपया कमज़ोर होता चला गया। विदेशी पोर्टफोलियोऔरऔर भी

डॉलर के मुकाबले रुपए का गिरना कोई अनोखी बात नहीं। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान रुपया गिरा था और 2013 में भी खूब गिरा जब अमेरिका के क्रेंदीय बैंक फेडरल रिजर्व ने घोषणा कर दी थी कि वो सरकार के ट्रेजरी बॉन्ड खरीदकर सिस्टम में डॉलर झोंकने का सिलसिला धीमा करने जा रहा है जिसके बाद वहां के सरकारी बॉन्डों के दाम घट और उन पर यील्ड बढ़ गई थी। लेकिन इस बार रुपया केवलऔरऔर भी

तारीख 27 सितंबर 2024। उस दिन देश का विदेशी मुद्रा भंडार 704.88 अरब डॉलर के ऐतिहासिक शिखर पर था। उसी दिन बीएसई सेंसेक्स ने 85,978.25 और एनएसई निफ्टी ने 26,277.35 का ऐतिहासिक शिखर चूमा था। तब एक डॉलर 83.72 रुपए का हुआ करता था। यही वो दिन था, जब से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का भारतीय शेयर बाज़ार से मोहभंग होना शुरू हुआ। एनएसडीएल के आधिकारिक डेटा के मुताबिक वे तब से 24 जनवरी 2024 तक हमारेऔरऔर भी