सेवाओं का निर्यात ठंडा पड़ता गया। वैसे यह भी एक मिथ है कि भारत सेवाओं के निर्यात में तोप-तमंचा है। विश्व बैंक की रैंकिंग में प्रति व्यक्ति सेवा निर्यात में भारत 114 देशों में 89वें नंबर पर है और मलयेशिया, तुर्किए व थाईलैंड जैसे देशों से भी नीचे हैं। खैर, सेवाओं का निर्यात ठंडा पड़ने से देश में डॉलर का आना थम गया, जबकि निकलने की रफ्तार बढ़ गई तो रुपया कमज़ोर होता चला गया। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को भारतीय अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित कमज़ोरी का अहसास दो-तीन साल पहले ही हो गया था। वैसे भी उनकी प्रवृति ‘गंजेड़ी यार किसके, दम लगाके खिसके’ वाली होती है। अक्टूबर 2021 से ही एफपीआई भारतीय शेयर बाज़ार में खरीदने से ज्यादा बेचे जा रहे हैं। 27 सितंबर 2024 से कल 28 जनवरी 2025 तक ही वे हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट से ₹1.75 लाख करोड़ से ज्यादा निकाल चुके हैं। कोरोना संकट के दौरान मार्च 2020 के आसपास बाज़ार जब जमकर गिरा था, तब खरीदा था और उसके बाद जब भी मौका मिला, मुनाफा निकाल रहे हैं। इधर, डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरत जाने से उनको घाटा लग रहा है। फिर भी वे बेचे ही जा रहे हैं क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि हालात सुधरेंगे। अब बुधवार की बुद्धि…
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