सप्ताह का आखिरी ट्रेडिंग दिन शुक्रवार और उसमें भी ट्रेडिग का आखिरी एक घंटा। शेयर बाजार के अनुभवी ट्रेडर बताते हैं कि इसे गहराई से परखना बड़ा महत्वपूर्ण है। वैसे तो इंट्रा-डे ट्रेडरों के लिए हर दिन की ट्रेडिंग का आखिरी घंटा बहुत अहम होता है क्योंकि उन्हें घाटा हो फायदा, सौदे काटकर निकल जाना होता है। लेकिन शुक्रवार को उनके साथ स्विंग ट्रेडर भी जुड़ जाते हैं क्योंकि वे शनिवार-रविवार को बाज़ार बंद रहने पर देश-दुनियाऔरऔर भी

हमारे शेयर बाज़ार में जब से ऑप्शंस सौदों का साप्ताहिक सेटलमेंट होने लगा है, तब से ट्रेडरों के लिए बुधवार व गुरुवार के भाव और उनका पैटर्न बहुत अहम हो गया है। इसके घेरे में डेरिवेटिव सेगमेंट में शामिल स्टॉक्स आते हैं। एनएसई ने 160 स्टॉक्स और तीन सूचकांकों में डेरिवेटिव ट्रेडिंग की इजाज़त दे रखी है। असल में प्रोफेशनल ट्रेडरों की तरह रिटेल ट्रेडरों को भी अपना कारोबार इन्हीं स्टॉक्स तक सीमित रखना चाहिए क्योंकि इनमेंऔरऔर भी

जिन्हें भावों को पढ़ना आ गया, उनके पैटर्न को समझना आ गया, समझ लीजिए कि उन्होंने शेयर बाज़ार की आधी बाज़ी जीत ली। जिन्होंने भावों और उनके पैटर्न के पीछे सक्रिय साफ-साफ न दिखनेवाले इंसानों या उनके समूहों की शिनाख्त कर ली, समझ लीजिए कि समूचा बाज़ार उनकी मुठ्ठी में आ गया। क्या हमारे-आप जैसे रिटेल ट्रेडर पहले आधी बाज़ी जीतने और फिर बाज़ार पर पूरा अख्तियार हासिल करने की स्थिति में आ सकते हैं? यकीनन। बसऔरऔर भी

जो इंसान शेयर बाज़ार में भावों को चलाते हैं, आखिर उनको कौन चलाता/चलाती है? दरअसल, उनको चलाती हैं इंसान के अंदर समाई लालच व डर की दो प्रबल भावनाएं। छोटा हो या बड़ा, व्यक्ति हो या संस्था, हर कोई लाभ कमाने के मकसद से ही शेयर बाज़ार में उतरता है। कोई तेज़ी का माहौल का हामी होता है और खरीदने के बाद बेचकर कमाता है तो कोई मंदी का हामी होता है और बेचने के बाद खरीदकरऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडरों के बीच अरसे से कहा जाता रहा है कि भाव ही भगवान है। लेकिन इन भावों को इंसान ही चलाते हैं। हो सकता है कि वे देशी-विदेशी निवेश संस्थाओं, म्यूचुअल फंडों या बीमा कंपनियों में काम करते हों, प्रोफेशनल ट्रेडर हों या ऐसे ट्रेडर हों जो सुबह से शाम तक शेयर बाज़ार में डटे रहते हैं। यहां तक कि अल्गोरिदम ट्रेडिंग के पीछे भी अंततः इंसान ही होते हैं। इन सबकी ट्रेडिंग कीऔरऔर भी