जब तक आपके पास रोज़ी-रोज़गार है, तब तक वर्तमान ज़रूरतों और भावी आकस्मिकताओं का इंतज़ाम कर लेने के बाद बचा हुआ धन शेयर बाज़ार में लगाने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन इसका भी स्पष्ट अनुशासन है। आप 40-50 हज़ार से लेकर महीने में एक लाख रुपए तक की मध्यम कमाई करते हैं तो बचत को सोना, एफडी और म्यूचुअल फंड की एसआईपी वगैरह में लगाने के बाद जो इफरात धन बचता है, उसका 95 प्रतिशत हिस्सा शेयरऔरऔर भी

पहले भी लगता था और अब भी दो साल में कोरोना की मार से बेरोज़गार हुए बहुतेरे लोगों को लगता है कि शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग से अच्छा-खासा कमाया जा सकता है। ब्रोकर और बाज़ार के धंधे से जुड़े सभी लोग उन्हें बताते हैं कि इसके लिए ज्यादा पूंजी नहीं चाहिए। दो-चार हजार से शुरू कर सकते हैं। लेकिन उनके कहने पर जो कूद पड़ा, उसके दो-चार हज़ार डूबने के बाद निकालने के चक्कर में अपने साथऔरऔर भी

अगर आप ट्रेडर हैं तो आपको शेयर बाज़ार के उन्मादी स्वभाव से पार पाने की कला विकसित करनी पड़ेगी। लेकिन अगर आप लम्बे समय के निवेशक हैं तो इसको लेकर आपको खास चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि तीन से पांच साल या इससे ज्यादा वक्त में शेयर बाज़ार का अंतिम स्वभाव अच्छी कंपनियों में हो रहे मूल्य सृजन को सामने लाने का रहा है। हां, निवेश से पहले आपको कंपनी के बिजनेस, उसके पीछे सक्रिय उद्यमी केऔरऔर भी

विशाल बाज़ार होने के बावजूद भारत जैसा विकासशील देश तब तक विकसित नहीं बन सकता, जब तक वह शानदार इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं विकसित कर लेता। यह हासिल कर पाना बेहद कठिन चुनौती है। भारत इसे 1947 में आज़ाद होने से लेकर 1991 में आर्थिक उदारीकरण का खुलापन अपनाने और उसके बाद भी अब तक के तीस सालों में झेलता रहा है। कारण, अर्थव्यवस्था का आधारभूत तंत्र बनाने में बहुत ज्यादा पूंजी बहुत ज्यादा समय तक लगानी पड़ती है। इस पर चूंकि रिटर्न बहुत ज्यादा समय में आता है, इसलिए फटाफट मुनाफा कमाने की फितरत वाला निजी क्षेत्र इसमें निवेश करने के लिए आगे नहीं आता। बैंक भी आधारभूत संरचना बनाने के लिए ऋण देने से कतराते हैं क्योंकि कम समय के डिपॉज़िट को वे ज्यादा समय के ऋण में फंसाने का जोखिम नहीं उठा सकते। आज़ादी के तुरंत बाद भी ऐसा हुआ और अब भी ऐसा ही हो रहा है। इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकास का अधिकांश काम भारत सरकार को ही करना पड़ा है।और भी

अमेरिका से लेकर यूरोप, जापान, चीन जैसे बड़े देशों के अलावा सिंगापुर व मॉरीशस और तमाम छोटे देशों से काम कर रहे हैं करोड़ों ट्रेडर। फिर भारत के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय लाखों ट्रेडर। जिस तरह पेड़ों से ही जंगल बनता है, मगर जंगल का सम्मिलित स्वभाव अलग होता है, उसी तरह दुनिया के कोने-कोने से करोड़ों ट्रेडरों व निवेशकों से मिलकर बना शेयर बाज़ार का सामूहिक स्वरूप अलग होता है। रिटेल ट्रेडर व निवेशक तो शेयरऔरऔर भी