गजब है दुनिया-जहान की चाल। किसी का संकट किसी के लिए मौका बन जाता है। देश-दुनिया में जब से कोविड-19 या कोरोना का संकट उभरा है, तब से शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग कई गुना बढ़ गई। लोगबाग यह जानते हुए भी बाज़ार में कूद रहे हैं कि शेयर बाज़ार में जमकर रिस्क है। इसमें भी ट्रेडिंग तो बहुत ही ज्यादा रिस्की है। हालांकि सेबी ने रिस्क को घटाने की हरसंभव कोशिश की है। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

युद्ध की विभीषिका हो या महामारी की मार, इंसान की अदम्य जिजीविसा हर हाल में उद्यमशीलता के मौके तलाश ही लेती है। मसलन, भारत पर कोरोना के कसते शिकंज़े और लॉकडाउन के बीच व्यक्ति-व्यक्ति के भौतिक फासले बढ़ गए हैं। ऐसे में अपडेट रहने के लिए डेटा की मांग बढ़ गई है। डिजिटल पेमेंट का भी चलन बढ़ गया है। कुछ और भी उद्योगों को नया आवेग मिला है। तथास्तु में ऐसे ही एक उद्योग की कंपनी…औरऔर भी

विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अगले 12-24 महीनों में ज्यादा रिटर्न की शीर्ष सूची में चीन के साथ भारत को भी रखा है। उनके मुताबिक भारतीय शेयर बाज़ार दुनिया के सबसे ज्यादा बढ़ सकने वाले बाज़ारों में शुमार है। वे भारत की अर्थव्यवस्था के उद्धार के लिए नहीं आ रहे। उनका सीधा मकसद यहां बन रहे मूल्य से मुनाफा खींचना है। वे अंधा सटोरिया निवेश नहीं करते, बल्कि मूल्यवान कपनियों पर दांव लगाते हैं। अब शुक्र का अभ्यास…औरऔर भी

भारतीय अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है। पहली तिमाही में जीडीपी के 23.9% घटने पर भी विदेशी निवेशक संस्थाओं ने हमारे शेयर बाज़ार में निवेश ज्यादा नहीं घटाया। बीते महीने उन्होंने कैश सेगमेंट में करीब 15,750 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया। अगर ऋण बाज़ार को भी जोड़ दें तो अगस्त में उनका कुल निवेश 6 अरब डॉलर (≈ 45,000 करोड़ रुपए) का रहा है। वे एशिया में चीन व भारत में निवेश बढ़ा रहे हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

अपने शेयर बाज़ार के बारे में खास जानने की बात है कि यहां देशी निवेशक संस्थाएं हमेशा रक्षात्मक रहती हैं। वे कभी-कभार ही आक्रामक होती हैं। दूसरी तरफ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक या विदेशी निवेशक संस्थाएं हमेशा ही आक्रामक रहती हैं। ये एफआईआई आज हमारे बाज़ार की दशा-दिशा तय करने के सबसे अहम कारक हैं। उनके डॉलर आने से बाज़ार चढ़ता है। इससे रुपया मजबूत होता है तो वे ज्यादा डॉलर कमा लेते हैं। अब बुद्ध की बुद्धि…औरऔर भी