सेबी ने मार्जिन ट्रेडिंग की कमियों को दूर करने, उसका रिस्क घटाने और उसमें ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए नए नियम बनाकर तैयार कर लिए। ये नियम 1 अगस्त से लागू होने थे। पर ब्रोकरों के संघ, एसोसिएशन ऑफ नेशनल एक्सचेंज मेम्बर्स इन इंडिया (एएनएमआई) के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो सका। अंततः इन्हें 1 सितंबर से अपना लिया गया और 1 दिसंबर तक क्रमिक रूप से लागू किया जा रहा है। अब शुक्र का अभ्यास…औरऔर भी

मार्जिन ट्रेडिंग की धारणा बुरी नहीं है। लेकिन ब्रोकर नियमों व सिस्टम की कमियों का दुरुपयोग कर निवेशकों का धन कैसे अपना हित साधने में लगा सकते हैं, यह सच साल भर पहले कार्वी घोटाले से उजागर हो गया। इसका दोहराव रोकने के लिए पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी ने इस साल फरवरी में निवेशकों के शेयरों को ट्रेडिंग और क्लियरिंग सदस्यों या ब्रोकरों के खातों में ट्रांसफर करने पर रोक लगा दी। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

बहुत-से आम ट्रेडरों के पास इतना धन नहीं होता कि स्टॉक्स या इंडेक्स फ्यूचर्स में ट्रेड कर सकें क्योंकि इनका एक भी लॉट खरीदने के लिए कई लाख चाहिए। ऐसे में कैश सेगमेंट की मार्जिन ट्रेडिंग उन्हें बड़ी सुहाती है। ब्रोकर भी उनके इस लालच का भरपूर फायदा उठाते हैं। स्टॉक के पूरे भाव के बजाय निर्धारित हिस्सा दें और भाव बढ़ जाएं तो पूरा फायदा आपका। बीच में ब्रोकर का थोड़ा कट। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में उतरनेवाला हर कोई यही सोचता है कि कितना कम लगाकर कितना ज्यादा कमा लिया जाए। इसी चक्कर में आमलोग लंबे निवेश के धैर्य के बजाय ट्रेडिंग की हड़बड़ी में पड़ जाते हैं। समझते हैं कि न्यूनतम रिस्क में अधिकतम कमाने का तरीका अपनाना है। पर हकीकत में न्यूनतम पूंजी में अधिकतम कमाई के जुगाड़ का जोखिम उठाते और मार्जिन ट्रेडिंग अपना कर उधार के धन पर ट्रेडिंग करने लगते है। अब मंगल की दृष्टि…औरऔर भी