नब्बे के दशक में छोटे दुकानदार व बेरोजगार शेयर बाज़ार में झूमकर उतरे थे। हर्षद मेहता की कलाकारी में उन्होंने धन भी खूब कमाया। लेकिन हर्षद मेहता का भांडा फूटते ही उनकी सारी कमाई स्वाहा हो गई। वे ऐसे बरबाद हुए कि दोबारा शेयर बाज़ार का रुख नहीं किया। उसके कुछ साल बाद पब्लिक इश्यू का जुनून चढ़ा। तब कुकुरमुत्तों की तरह उगी हज़ारों कंपनियां मासूम निवेशकों से करोड़ों जुटाकर चम्पत हो गईं। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी

कहने को अपने यहां निवेशक संरक्षण कोष हैं। ये कोष स्टॉक एक्सचेंजों के पास हैं। साथ ही कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के अधीन अलग से निवेशक शिक्षा व संरक्षण कोष बना हुआ है। मगर सच्चाई यह है कि शेयर बाज़ार का मारा निवेशक सेबी और स्टॉक एक्सचेजों के दरवाजों पर सिर पटकता रह जाता है। यही वजह है कि तीन दशकों से निजी निवेशकों की संख्या आबादी के लगभग 2% पर अटकी पड़ी है। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

देश में कोरोना शहरों ही नहीं, गांवों तक फैला है। एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि अब ग्रामीण जिले कोविड-19 के नए हॉटस्पॉट बन गए हैं और नए संक्रमण में उनका हिस्सा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। फिर भी चालू वित्त वर्ष 2020-21 की जून या पहली तिमाही में कृषि व संबंधित क्षेत्र के आर्थिक विकास की गति 3.4 प्रतिशत रही है, जबकि हमारी पूरी अर्थव्यवस्था इस दौरान 23.9 प्रतिशत घटऔरऔर भी

शेयर बाज़ार ऐसी जगह है कि जहां 95% निवेशक/ट्रेडर हंसते हुए आते और रोते हुए निकलते हैं। कारण यह कि वे रिस्क को कायदे से समझे बिना लालच में आकर बाज़ार में कूदते हैं। ऊपर से अपने यहां निवेशकों के संरक्षण की प्रणाली बहुत पुख्ता नहीं है। डीमैट खाता खुलवाते वक्त ही ब्रोकर निवेशकों के हस्तक्षर से उनकी पावर ऑफ अटार्नी ले लेते हैं। फिर ब्रोकरेज़ की खातिर उनके लाखों उड़ा डालते हैं। अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी