पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी बराबर प्रयासरत है कि ब्रोकरों के ‘अन्याय’ से निवेशकों व ट्रेडरों को बचा लिया जाए। इसी क्रम में वह, कल 1 सितंबर से मार्जिन ट्रेडिंग संबंधी नए नियम लागू कर रही है। अभी तक ब्रोकर निवेशक के 70-80% शेयर अपने पास बतौर मार्जिन रख लेते थे। लेकिन अब शेयर निवेशक के डीमैट खाते में ही रहेंगे और मार्जिन ट्रेडिंग के लिए उन्हें ब्रोकर के पास गिरवी रखना पड़ेगा। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

देश के राजनीतिक व सामाजिक ही नहीं, वित्तीय जीवन में भी ठगों की भरमार है। बताइए, कोई जानी-मानी इक्विटी रिसर्च फर्म प्रतिमाह एक कंपनी बताने के 6000 रुपए सालाना लेने के बावजूद ऐसी कंपनी सुझाए जिसका शेयर अभी 193 रुपए पर हो और तीन साल में 200 रुपए तक पहुंचने का लक्ष्य रखे तो आप क्या कहेंगे! फर्म कहती है कि इसमें निवेश 130 रुपए तक गिरने पर करें। क्या मतलब है इसका? अब आज का तथास्तु…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में नई भीड़ तब आई है, जब पिछले 3 साल में जितने व जिस तरह ब्रोकरों ने डिफॉल्ट किया है, वैसा शायद पिछले 15 साल में नहीं हुआ था। कार्वी का किस्सा सबको पता है। पर इसके अलावा रिटेल निवेशकों को भारी चपत लगाने वाले ब्रोकरेज हाउसों में वेल्थ मंत्रा, इंडिया निवेश, फेयरवेल्थ, मोडेक्स, आम्रपाली आद्या, कास्सा फिनवेस्ट, यूनिकॉर्न, वसंती, फाइकस सिक्यू. व एलायड फाइनेंस जैसे नाम शामिल हैं। अब शुक्र का अभ्यास…और भीऔर भी

दीए की लौ पर पतंगों की तरह नए-नए रिटेल ट्रेडर शेयर बाज़ार की तरफ लपके चले आ रहे हैं। तमाम ब्रोकरेज़ हाउस खुश हैं कि नई पीढ़ी के निवेशक ज़ोर-शोर से डीमैट खाते खुलवा रहे हैं। दरअसल, ऑनलाइन ट्रेडिंग, कम ब्रोकरेज़, भांति-भांति के एप्प, धन व स्टॉक्स के आसान ट्रांसफर और कोरोना संकट में घर से काम करने की सहूलियत ने शेयर बाज़ार में खेलने को हाल-फिलहाल फुरसत का धंधा बना दिया है। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी

साल भर पहले एनएसई में शेयरों में हो रही ट्रेडिंग में रिटेल निवेशकों का हिस्सा 38% हुआ करता था। इधर नए निवेशकों के जुड़ने पर इसमें शायद इजाफा हो गया होगा। मुश्किल यह है कि नए आगंतुक समझदारी या विश्लेषण से मूल्य की तलाश में निकले दीर्घकालिक निवेशक नहीं, बल्कि डे-ट्रेडिंग, मार्जिन ट्रेडिंग और फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस में खेलनेवाले 25-30 या 35 साल तक के लोग हैं जिन्हें गेमिंग मे मज़ा आता है। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी