उधर आम निवेशक इस बात से परेशान हैं कि शेयर बेचने पर उनसे मार्जिन क्यों लिया जा रहा है। आखिर ब्रोकर के पास पावर ऑफ एटॉर्नी है। वह कोई रिस्क नहीं उठाता, न उसके डिफॉल्ट की गुंजाइश है। इधर, इंट्रा-डे ट्रेडर भी सेबी के नए नियम से दुखी हैं। अभी तक ब्रोकर उन्हें इंट्रा-डे अर्जित लाभ पर उसी दिन नई पोजिशन लेने की इजाज़त दे देता था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

सब धान बाइस पसेरी तौलना पुरानी कहावत है। लेकिन सेबी ने कैश सेगमेंट की मार्जिन ट्रेडिंग में कुछ ऐसा ही नियम बनाया है। चाहे नए शेयर खरीदें या पोर्टफोलियो के पुराने शेयर बेचें, दोनों ही हालत में आपको मूल्य का 20% हिस्सा शुरूआत में बतौर मार्जिन दे देना होगा। खरीदने पर मार्जिन देने की बात समझ में आती है। लेकिन जब हम शेयर बेच रहे हैं, तब मार्जिन जमा करने का क्या तुक! अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

गिरवी रखे शेयरों की नई प्रक्रिया के बारे में आपके ब्रोकर ने सारा ब्योरा आपको बता दिया होगा। ओटीपी से पुष्टि करने पर ही आपके शेयर ब्रोकर के खाते में जाएंगे। अन्यथा आपके डीमैट खाते में पड़े रहेंगे। असली मसला है कैश सेगमेंट में मार्जिन ट्रेडिंग के नए नियम। ब्रोकर इनका विरोध कर चुके हैं। अब कुछ ट्रेडरों का भी कहना कि सेबी ने इन्हें आसान बनाने के बजाय बहुत उलझा दिया है। अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी ने शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट में मार्जिन ट्रेडिंग और शेयरों को गिरवी रखे जाने संबंधी नियम बदल दिए गए हैं। पहले ब्रोकरों को जो अबाधित अधिकार मिले थे, उन्हें अब खत्म कर दिया गया है और आपकी इजाजत के बिना ब्रोकर कुछ नहीं कर सकता। नए नियमों में जहां निवेशक को ज्यादा ताकत दी गई है, वहीं ब्रोकरों से जुड़े तंत्र को ज्यादा पारदर्शी बना दिया है। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता। एशियाई विकास बैंक कहता है भारत की आर्थिक विकास दर इस साल -9% रहेगी। जून में उसका अनुमान -4% का था। कोरोना के बढ़ते प्रकोप से लगता है कि भारत एकाध महीने में दुनिया में अमेरिका को पीछे छोड़ टॉप पर होगा। कोरोना काल में लाखों काम-धंधे बंद, 2.1 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं। उन्हें दोबारा काम मिलने के संकेत नहीं। फिर भी शेयर बाज़ार तेज़! अब तथास्तु में आज की कंपंनी…औरऔर भी