फिर से मंडरा रहे हैं मंदी के बादल, बढ़त रहेगी उम्मीद से कम: प्रणव

वित्त वर्ष 2009-10 में हमारी विकास दर बढ़कर आठ फीसदी और 2010-11 में 8.5 फीसदी पर पहुंच गई, जबकि वैश्विक वित्‍तीय संकट के कारण 2008-09 में हमारी विकास दर कम होकर 6.8 फीसदी पर आ गई थी। दुर्भाग्‍यवश एक बार फिर दुनिया के आकाश पर मंदी के बादल मंडरा रहे हैं, जिसकी छाया हम पर पड़ रही है। यह किसी और का नहीं, बल्कि खुद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है। उन्होंने बुधवार को राजधानी दिल्ली में आर्थिक संपादकों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए मौजूदा आर्थिक हालात का यह आकलन पेश किया।

उन्‍होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में विकास की गति को देखकर उन्‍हें निराशा हुई है। अब साफ हो गया है कि देश की विकास दर 2011-12 में अपेक्षा से कम रहेगी। अगर चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था आठ फीसदी की दर से भी बढ़ती है तो यह जश्न की बात होगी। वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्‍ट्रीय और घरेलू कारकों ने हमारी अर्थव्‍यवस्‍था पर असर डाला है।

अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में कच्‍चे तेल की कीमतें 105 डॉलर प्रति बैरल पर बनी हुई हैं। उन्‍होंने कहा कि इस साल जब बजट तैयार किया जा रहा था, तब कच्‍चे तेल की कीमत 90 से 95 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थी। कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों से हमारे ऊपर अनावश्‍यक बोझ पड़ा है। अन्‍य वस्‍तुओं की कीमतों और पूंजी के प्रवाह में भी परिवर्तन देखने को मिला है।

उन्होंने परोक्ष रूप से रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने में खामी निकालते हुए कहा, “वैश्विक अनिश्चितता के साथ-साथ ब्‍याज दरों में बढ़ोतरी ने उद्योग को नया निवेश करने में मदद नहीं की है।” इस साल पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.7 फीसदी रही जो पिछले 18 महीने का न्यूनतम स्तर है।

हालांकि उन्होंने दहाई अंक के करीब पहुंची मुद्रास्फीति के लिए मुख्य तौर पर वैश्विक जिंसों की बढ़ती कीमत को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, “मुद्रास्फीति नौ फीसदी के आसपास अटकी हुई है। मुझे उम्मीद है कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित सकल मुद्रास्फीति दिसंबर से घटेगी और मैं आशान्वित हूं कि वित्त वर्ष सात फीसदी के साथ समाप्त होगा।”

बता दें कि रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद सकल मुद्रास्फीति दहाई अंक के आस-पास टिकी हुई है। अगस्त महीने में यह 9.78 फीसदी पर रही है। मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक मार्च 2010 के बाद से 12 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है।

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