केंद्र सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की उन सभी कंपनियों को विदेश में कच्चे माल के स्रोत खरीदने की इजाजत दे दी है, जिन्होंने कम से कम पिछले तीन सालो में मुनाफा कमाया हो। अभी तक सरकारी कंपनियां विदेश से कच्चा माल तो खरीद सकती थीं, लेकिन कच्चा माल बनानेवाली कंपनियों को नहीं खरीद सकती थीं, जबकि निजी क्षेत्र की कंपनियों पर ऐसी कोई बंदिश नहीं है।
गुरुवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह नीतिगत फैसला लिया गया। यह लाभ फिलहाल कृषि, खनन, मैन्यूफैक्चरिंग और बिजली क्षेत्र के केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को दिया जाएगा। तय हुआ है कि ऐसे सार्वजनिक उपक्रमों, महारत्न व नवरत्न कंपनियों के निदेशक बोर्ड को बाहर से कच्चे माल के स्रोत के अधिग्रहण का निर्णय लेने के अधिकार दे दिए जाएंगे।
मीडिया को कैबिनेट के इस फैसले की जानकारी देते हुए सूचना व प्रसारण मंत्री ने बताया, “इस नीति से केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को कच्चे माल की आस्तियों के अधिग्रहण में मदद मिलेगी। यह नीति देश के दीर्घकालिक आर्थिक हित में है।”
असल में दुनिया में कच्चे माल के स्रोतों पर कब्जा करने की मारामारी मची हुई है क्योंकि किसी भी देश के पास इतने प्राकृतिक संसाधन नहीं है कि वह लंबे समय तक अपनी जरूरतें पूरी कर सके। चीन जैसे तमाम देश अपने नियमों को नई जरूरत के माकूल बना चुके हैं। लेकिन भारत अभी तक ठंडा पड़ा हुआ था। कोल इंडिया से लेकर ओएनजीसी जैसे सरकारी उपक्रम बराबर सरकार ने नियमों को ठीक करने की गुहार लगा रहे थे।
अभी तक साफ नीति न होने से ओएनजीसी की सब्सिडियरी ओएनजीसी विदेश को कई बार चीनी कंपनियों के आगे मात खानी पड़ी है। पिछले तीन सालों में चीन की कंपनियों ने विदेश में 50 से ज्यादा करार किए हैं, जबकि हमारी सरकारी कंपनियां केवल एक करार कर पाई हैं। अब तक की सबसे बड़ी डील ओएनजीसी विदेश की है जिसमें उसने साल 2008 में ब्रिटेन की लिस्टेड कंपनी इम्पीरियल एनर्जी को 190 करोड़ डॉलर में खरीदा था। कच्चे तेल व गैस के मामले में 2005 से 2009 के दौरान चीन की कंपनियों ने भारत की सरकारी कंपनियों को कम से कम आठ बार मात दी है।
कैबिनेट का ताजा फैसला राष्ट्रीय मैन्यूफैक्चरिंग प्रतिस्पर्धा परिषद के सुझावों और तमाम मंत्रालयों के बीच हुए व्यापक विचार-विमर्श के आधार पर किया गया है। यह भी तय हुआ है कि इस मकसद के लिए जरूरी हुआ तो सरकार अलग से एक संप्रभु संपदा निधि (एसडब्ल्यूएफ, सॉवरेन वेल्थ फंड) बना सकती है। विदेश मंत्रालय और विदेश में इसके मिशन बाहर से कच्चे माल के स्रोत खरीदने में सराकरी कंपनियों का सहयोग करेंगे।