अक्षय पात्र

ज्ञान तो विशाल सागर नहीं, अक्षय पात्र है। पुराना निकालो, नया बनता जाता है। कभी शेष नहीं होता। जब तक जीवन है, तब तक मन खदबद करता रहता है और ज्ञान का नया सत्व निकलता रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *