केंद्र सरकार ने कल बुधवार को ही सभी मंत्रालयों को बोलचाल की हिंदी इस्तेमाल करने के लिए लंबा-चौड़ा सर्कुलर जारी किया है। इसमें बताया गया है, “यह काफी नहीं है कि लिखने वाला अपनी बात खुद समझ सके कि उसने क्या लिखा है। जरूरी तो यह है कि पढ़ने वाले को समझ में आ जाए कि लिखने वाला कहना क्या चाहता है।” लेकिन हकीकत में हमारे बाबू लोग इतना गोलगपाड़ा करते हैं कि किसी के कुछ समझ में नहीं आ सकता।
मसलन, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को संसद के अगले सत्र में पेश करने के लिए एक ऐसे संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी जिससे बैंकों व वित्तीय संस्थाओं को डूबत ऋणों की वसूली में सहूलियत हो जाएगी। अभी इस सिलसिले में दो कानून हैं। लेकिन इनमें तमाम नुक्ते ऐसे हैं जिनके चलते सही तरीके से वसूली नहीं हो पाती। मंत्रिमंडल के इस फैसले को वित्त मंत्रालय के अनुवादकों ने कैसे पेश किया है, जरा इसकी बानगी देख लीजिए।
“केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज सुरक्षा हित तथा ऋण वसूली (संशोधन) विधेयक, 2011 को लागू करने के लिए इसे संसद के अगले सत्र में पेश करने की मंज़ूरी दे दी है। प्रस्तावित संशोधनों से बैंक अपनी परिचालन क्षमता में सुधार, खुदरा निवेशकों, घर के लिए ऋण लेने वालों आदि को वसूली की चिंता के बगैर ऋण देने के लिए अधिक निधि को काम में लगा सकेंगे। इसके अतिरिक्त, सुरक्षा हित (निष्पक्ष ऋण) के अनिवार्य पंजीकरण से ऋण में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
“प्रस्तावित संशोधनों से उधारकर्ता से बकाया ऋण की वसूली करने में बैंको को मज़बूती मिलेगी। यह विधेयक वित्तीय पूंजी को प्रतिभूतिकरण और पुननिर्माण तथा सुरक्षा हित को लागू करने वाले अधिनियम (एसएआरएफएईएसआई) तथा बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बकाया ऋणों की वसूली अधिनियम (आरडीबीएफ) में संशोधन करने की कोशिश है ताकि सुरक्षा हित तथा ऋण वसूली (संशोधन) विधेयक 2011 को लागू करने के ज़रिए बैंको और वित्तीय संस्थानों के बकाया ऋणों की वसूली से संबंधित नियामक और संस्थागत ढांचे को मज़बूती मिल सके।”
अगर इसे पढ़कर आपको कुछ भी समझ में आया हो तो आप यकीनन ईनाम पाने के हकदार हैं। वैसे जिसे इन सरकारी अनुवादकों ने ‘सुरक्षा हित’ लिखा है उसका न तो किसी सुरक्षा से लेना देना है और न ही किसी के हित से। अंग्रेजी में यह सिक्यूरिटी इंटरेस्ट है जिसका मतलब ऋण प्रपत्रों या प्रतिभूति पर ब्याज से है।