एकला चलो में क्या है!
लीक छोड़कर किसी नई राह पर अकेले चलने का फैसला कोई मुश्किल काम नहीं है। असली चुनौती उस राह पर समझदारी और दृढ़ता से चलते रहने की है। नहीं तो जिद के ठंडा पड़ते ही कदम वापस लौट जाते हैं।और भीऔर भी
सूरज निकलने के साथ नए विचार का एक कंकड़ ताकि हम वैचारिक जड़ता तोड़कर हर दिन नया कुछ सोच सकें और खुद जीवन में सफलता के नए सूत्र निकाल सकें…
लीक छोड़कर किसी नई राह पर अकेले चलने का फैसला कोई मुश्किल काम नहीं है। असली चुनौती उस राह पर समझदारी और दृढ़ता से चलते रहने की है। नहीं तो जिद के ठंडा पड़ते ही कदम वापस लौट जाते हैं।और भीऔर भी
कबीर की उलटबांसियों पहले आध्यात्म्य की अबूझ पहेलियां लगती थीं। अब दुनिया का असली सच लगती हैं। जैसे, गतिशीलता ही स्थाई है और जिसे हम स्थाई समझते हैं वो तो बराबर गतिशील है।और भीऔर भी
जो चीज जैसी लगती है, वैसी होती नहीं। आंखों के रेटिना पर तस्वीर उल्टी बनती है, दिमाग उसे सीधा करता है। इसी तरह सच समझने के लिए बुद्धि की जरूरत पड़ती है जो अध्ययन, अभ्यास और अनुभव से ही आती है।और भीऔर भी
शब्दों से परे की सोच!! जब शब्द नहीं था, सिर्फ नाद था, ध्वनियां थीं, तब भी तो इंसान सोचता ही रहा होगा। शब्दों के बिना ज़रा सोचकर देखें कि उस वक्त इंसान कैसे सोचता रहा होगा। बड़ा मज़ा आएगा।और भीऔर भी
किस्मत और भगवान पर हमारा वश नहीं। लेकिन आत्मविश्वास हमारा अपना है। किस्मत और भगवान जब किनारा कर लेते हैं, तब आत्मविश्वास ही काम आता है, हमें संभालता है। इसलिए उसे संभालिए।और भीऔर भी
जब हम व्यक्ति से लेकर समाज और अंदर से लेकर बाहर की प्रकृति के रिश्तों को तार-तार समझ लेते हैं तो हमारी अवस्था क्षीरसागर में शेषनाग की कुंडली पर लेटे विष्णु जैसी हो जाती है। हम मुक्त हो जाते हैं।और भीऔर भी
दुनिया में कुछ भी अकारण नहीं। सब नियमबद्ध है। नियम-विरुद्ध होने पर ही दुर्घटनाएं होती हैं। इसलिए इन नियमों को समझना जरूरी है और नियमों को तर्क पर तर्क, सवाल पर सवाल के बिना नहीं समझा जा सकता।और भीऔर भी
पीछे मुड़कर देखने व अफसोस करने की जरूरत नहीं है क्योंकि ज़िंदगी में कभी भी कुछ भी पीछे नहीं छूटता। न खुशियां, न अवसर, न चुनौतियां। वे भेष बदलकर सामने आती रहती हैं। देखिए तो सही, पहचानिए तो सही।और भीऔर भी
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