केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस नए खान व खनिज विधेयक को मंजूरी दे दी जिसमें प्रावधान है कि कोयला खनन कंपनियों को हर साल अपने शुद्ध लाभ का 26 फीसदी और अन्य खनिज कंपनियों को रॉयल्टी के बराबर रकम जिलास्तरीय खनिज न्यास में डालनी होगी जिसका इस्तेमाल स्थानीय लोगों के विकास में किया जाएगा। इस विधेयक के पारित होने के बाद तमाम खनिज व मेटल कंपनियों के शेयर धड़ाधड़ गिर गए। कोल इंडिया 5.2 फीसदी, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज 4.1 फीसदी, टाटा स्टील 4 फीसदी, जिंदल स्टील 3.8 फीसदी गिर गए।
लेकिन एक बात पर किसी ने गौर नहीं किया कि इसके जरिए सरकार खनन क्षेत्र में चल रहे ऐसे घोटाले पर परदा डालना चाहती है जिसका आकार 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से भी बड़ा है। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले से कैग का अनुमान है कि सरकारी राजस्व को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। लेकिन उजागर हो चुकी खबरों के मुताबिक अवैध खनन से सरकारी राजस्व को कर्नाटक में 16,200 करोड़ और गोवा में 12,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। उड़ीसा में देश का लगभग एक तिहाई लौह अयस्क भंडार है। वहां की 243 खदानों में 2009 से खनन बंद है। अकेले उड़ीसा में अवैध खनन से सरकारी खजाने को 3 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। इस तरह देश में अवैध खनन का घोटाला कम से कम 3.28 लाख करोड़ रुपए का है।
हालांकि केंद्रीय खान मंत्री दिनशा पटेल का कहना है कि इस विधेयक में अवैध खनन को रोकने के लिए कड़े प्रावधान दिए गए हैं। लेकिन हकीकत यही है कि नए खनन विधेयक में स्थानीय लोगों को हिस्सेदारी देने का मामला उछालकर अवैध खनन के घोटाले से लोगों को ध्यान हटाया जा रहा है। विधेयक में शुरू में कहा जा रहा था कि विस्थापित लोगों को प्रत्यक्ष रूप से 26 फीसदी इक्विटी भागीदारी दी जाएगी। लेकिन अब पूरे प्रावधान को उलझाकर हल्का कर दिया गया है।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने मंत्रिमंडल के फैसले के बाद मीडिया को बताया कि नए विधेयक के तहत कोयला कंपनियों को शुद्ध लाभ का 26 फीसदी हिस्सा प्रभावित लोगों के कल्याण के लिए देना होगा। ये फ़ैसला आदिवासियों के हित को ध्यान में रख कर लिया गया है।
खान मंत्री दिनशा पटेल ने कहा, “पर्यावरण की सुरक्षा के लिए और टिकाऊ विकास के लिए खनन से पहले प्रभावित लोगों का परामर्श लेना अनिवार्य किया जाएगा। इस विधेयक के तहत देश के 60 ऐसे ज़िलों में राष्ट्रीय खनन नियामक प्राधिकरण और राष्ट्रीय खनिज ट्राब्यूनल बनाए जाएंगे, जहां खनिज संसाधन काफ़ी प्रचुर मात्रा में हैं। राज्यों व केंद्र के खनन से जुड़े विभागों की क्षमता बढ़ाने के लिए भी व्यवस्था की जाएगी। जहां तक रॉयल्टी की बात है तो इस विधेयक के आने से सरकार को 4500 करोड़ से बढ़कर 8,500 करोड़ की रॉयल्टी मिलने लगेगी।”
विधेयक में प्रावधान है कि खनन कंपनियों को राज्य सरकार को कुल रॉयल्टी पर 10 फीसदी और केंद्र सरकार को 2.5 फीसदी का उपकर जमा करना होगा। इस विधेयक को एक ‘क्रांतिकारी क़दम’ बताते हुए यूपीए सरकार के मंत्रियों ने दावा किया कि सरकार ग्रामीणों और ख़ासतौर पर आदिवासियों के कल्याण के मुद्दे पर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। विधेयक को संसद के आनेवाले शीतसत्र में पेश कर दिए जाने की योजना है।
उधर, प्रमुख उद्योग संगठनों, फ़िक्की और एसोचैम ने लाभ व रॉयल्टी में कतरब्योंत के प्रावधान पर आपत्ति जताई है और कहा है कि इससे विदेशी निवेशकों का भारत में निवेश करने का उत्साह ख़त्म हो जाएगा। फ़िक्की का कहना है कि भारत उन देशों में से एक है जहां पहले से ही खनन कंपनियों पर सबसे ज़्यादा टैक्स लगाया जाता है। नए विधेयक से कोयले के खनन पर 61 फीसदी और लौह अयस्क के खनन पर 55 फीसदी तक टैक्स का बोझ बढ़ जाएगा।
वहीं, एसोचैम का कहना है कि आस्ट्रेलिया में खनन कंपनियों पर 39 फीसदी का टैक्स भार है, कॉन्गो में 36 फीसदी, रूस में 35 फीसदी और चीन में 32 फीसदी है। ऐसे में भारत में इतने कड़े प्रावधान लाना व्यावहारिक नहीं है। फ़िक्की का कहना है कि नए विधेयक से खनन क्षेत्र पर नकारात्मक असर पड़ेगा। उसने सरकार से अपील की है कि इस विधेयक पर एक बार फिर से नज़र डाली जाए और खनन कंपनियों के हितों पर भी ध्यान दिया जाए।
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