भारत फोर्ज एक दशक पहले तक महज एक ऑटो कंपोनेंट कंपनी हुआ करती थी। लेकिन अब वह तेल व गैस, रेलवे, बिजली और एयरोस्पेस तक के साजोसामान व उपकरण बनाने लगी है। उसने हाल ही में बिजली क्षेत्र के अहम उपकरण बनाने की शुरुआत की है। धारे-धीरे वह बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी का स्वरूप अख्तियार करती जा रही है। यूं तो अब भी बड़ी कपनी है। कल्याणी समूह की अगुआ कंपनी है। वित्त वर्ष 2009-10 में उसने 1856.40 करोड़ रुपए की आय पर 127.04 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 24.13 फीसदी था। इधर दिसंबर 2010 की तिमाही में कंपनी की आय 776.96 करोड़, शुद्ध लाभ 82.61 और ओपीएम बढ़कर 25.89 फीसदी हो गया।
लेकिन कंपनी का शेयर दिसंबर 2010 के बाद से गिरता गया। 2 दिसंबर 2010 को उसने 412.90 रुपए पर 52 हफ्ते का शिखर बनाया था। पर, नए साल में जनवरी के दौरान यह नीचे में 323.10 रुपए, फरवरी में 298.15 रुपए और मार्च में 297 रुपए तक चला गया। हां, अब वह फिर से बढ़त की राह पर है। कल 6 अप्रैल को वह बीएसई (कोड – 500493) में 364.75 रुपए और एनएसई (कोड – BHARATFORG) में 365.05 रुपए पर बंद हुआ है। संयोग की बात यह भी है कि ठीक साल भर पहले 6 अप्रैल 2010 को वह 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर 237.50 रुपए पर था।
मूल्यांकन के लिहाज से भारत फोर्ज यकीनन महंगा लगता है। मौजूदा भाव पर उसका पी/ई अनुपात 30.9 निकलता है क्योंकि उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 11.8 रुपए है। लेकिन कंपनी जिस तरह खुद को ढाल रही है, उसे देखते हुए ए ग्रुप के इस शेयर में मौजूदा स्तर पर किया गया निवेश भविष्य में लाभदायी साबित हो सकता है।
अमेरिका, चीन व यूरोप समेत दुनिया के पांच देशों में कंपनी की सब्सिडियरी इकाइयां हैं जो ऑटो व इंजीनियरिंग क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करती हैं। कंपनी इधर इन सब्सिडियरी इकाइयों की रीस्ट्रक्चरिंग और विदेशी बाजार से आय बढ़ाने की कोशिशों में लगी है। 2008 की वैश्विक मंदी से इन इकाइयों को झटका लगा था। लेकिन अमेरिका व यूरोप के वाणिज्यिक वाहन उद्योग में तेजी से आए सुधार के बाद अब हालात काफी संभल गए हैं।
कंपनी प्रबंधन को उम्मीद है कि अगले 12 महीनों में उसकी विदेशी इकाइयों की बिक्री 25 फीसदी बढ़ जाएगी। खासकर यूरोप के धंधे से उसे नए वित्त वर्ष 2011-12 में ब्रेक-इवेन स्तर से निकलकर ठीकठाक मुनाफा कमाने की अपेक्षा है। वैसे, मांग निकलने से पिछली कुछ तिमाहियों में कंपनी की विदेशी सब्सडियरी इकाइयों का उत्पादन स्तर बढ़ा है। इसे इस बात से देखा जा सकता है कि दो साल पहले तक जहां उत्पादन क्षमता का 35 फीसदी इस्तेमाल हो रहा था, वहीं अब यह स्तर 55 फीसदी के करीब पहुंच गया है। अकेले स्तर पर बात करें तो कंपनी की आय का एक तिहाई हिस्सा विदेशी बाजारों से आता है, जबकि समेकित आधार पर उसकी करीब आधी कमाई विदेश से होती है।
कंपनी इधर खुद को कई स्तरों पर ढाल रही है। वह महज ऑटो क्षेत्र तक सीमित रहने का जोखिम खत्म कर रही है। पांच साल पहले तक नॉन-ऑटो सेगमेंट से उसकी आय का तकरीबन 20 फीसदी हिस्सा आता था। अब यह योगदान बढ़कर 40 फीसदी तक पहुंच गया है। फिर भी धंधे में जोखिम तो रहेंगे ही। लेकिन कंपनी जिस तरह से हर कमजोर पक्ष को दुरुस्त करने में लगी है, उससे लगता है कि मौजूदा वित्त वर्ष उसके शेयर को नई ऊंचाई पर पहुंचा सकता है।
कंपनी की कुल इक्विटी 46.57 करोड़ रुपए है जो 2 रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 57.94 फीसदी हिस्सा पब्लिक और 42.06 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। पब्लिक के हिस्से में से एफआईआई के पास 14.14 फीसदी और डीआईआई के पास 18.76 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 58,743 है। नौ बड़े शेयरधारकों के पास उसकी 24.77 फीसदी इक्विटी हैं। इनमें प्रमुख हैं – एलआईसी (9.01 फीसदी), कृतद्न्य मैनेजमेंट (3.62 फीसदी), जानुस कांट्रेरियन फंड (2.97 फीसदी), न्यू इंडिया एश्योरेंस (2.07 फीसदी) और रिलायंस कैपिटल ट्रस्टी कंपनी जिसके पास भारत फोर्ज के 1.45 फीसदी शेयर हैं।
good mor. sir niche b nahi upper b nahi aur 4 din bhatkana hai edar udar bajar ko