वित्तीय कानून पुराने, बनेगा आयोग

देश में अंग्रेजों के जमाने के रिवाजों व कानूनों को बदलने का मन बनने लगा है। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने शुक्रवार को भोपाल में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट के दीक्षांत समारोह में पहनी जानेवाली ड्रेस को बर्बर औपनिवेश रिवाज बताते हुए उतार फेंका तो उसके एक दिन पहले गुरुवार को भारतीय रिजर्व बैंक के प्लैटिनम जुबली समारोह में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि देश में वित्तीय क्षेत्र को चलानेवाले ज्यादातर कानून पुराने पड़ गए हैं। जैसे, आरबीआई एक्ट 1934 का है, इंश्योरेंस एक्ट 1938 का है, पब्लिक डेट एक्ट 1944 का है। इकलौता सिक्यूरिटीज कांट्रैक्ट एक्ट ही आजादी के बाद बना 1956 का कानून है।

वित्त मंत्री ने कहा कि अलग-अलग समय पर हुए व्यापक संशोधनों से इन कानूनों की अस्पष्टता व जटिलता को और बढ़ा दिया है। जितने ज्यादा कानून होते हैं, उनमें एक-दूसरे से खींचतान की गुंजाइश उतनी ही ज्यादा हो जाती है। नतीजतन निगरानी व नियंत्रण का अधूरापन और उलझाव बढ़ जाता है। यह वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के बीच असंगति और बाजार के भागीदारों के बीच भ्रांति का सबब बन गया है। वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर रिजर्व बैंक के वर्तमान और पूर्व गवनर्रों की मौजूदगी में साफ-साफ लफ्जों में कहा कि देश के वित्तीय क्षेत्र और बाजार के सहज विकास के लिए इन कानूनों को दुरुस्त करना जरूरी है।

प्रणव मुखर्जी ने बताया कि इसके लिए वे इस साल के बजट में वित्तीय क्षेत्र वैधानिक सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) बनाने का प्रस्ताव पेश कर चुके हैं। इस आयोग का गठन जल्द किया जाएगा। आयोग का अध्यक्ष वित्तीय क्षेत्र की समझ रखनेवाले किसी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज को बनाया जाएगा, जबकि इसके सदस्यों के बतौर कानून, नियमन और वित्तीय क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को रखा जाएगा। यह आयोग वित्तीय क्षेत्र के कानूनों को इस तरह से ढालेगा ताकि वे मौजूदा जरूरतों के अनुरूप हो सकें।

प्रणब दा ने एक बार और साफ की कि बजट में उन्होंने जिस फाइनेंशियल स्टैबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल (एफएसडीसी) के गठन की घोषणा की है, वह वित्तीय क्षेत्र का सुपर-रेगुलेटर नहीं है। बता दें कि मीडिया में अभी तक यही बताया जा रहा है कि एफएसडीसी वित्तीय क्षेत्र के चारों नियामकों रिजर्व बैंक (बैंकिंग क्षेत्र), सेबी (पूंजी बाजार), आईआरडीए (बीमा) और पीएफआरडीए (पेंशन) के ऊपर की नियामक होगी। अभी जो काम हाई लेवल को-ऑर्डिनेशन कमिटी (एचएलसीसी) कर रही है, वह नई परिषद करेगी। लेकिन वित्त मंत्री ने कहा कि ऐसा कतई नहीं है। सभी नियामकों की स्वायत्तता बनाए रखी जाएगी। एफएसडीसी का एक काम इनके बीच समन्वय का भी होगा। लेकिन मूल काम वित्तीय समावेश व वित्तीय स्थायित्व के लक्ष्य को हासिल करने का होगा। इस परिषद का ठीक-ठीक स्वरूप क्या होगा, इस पर विचार किया जा रहा है। जल्दी ही इस पर चर्चा के लिए एक प्रारूप सबके सामने पेश किया जाएगा।

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