गैताल त्रिवेणी ग्लास व लॉयड स्टील

जब इकनॉमिक टाइम्स (ईटी) जैसा नंबर एक बिजनेस अखबार सुबह-सुबह पहले पन्ने पर मुख्य खबर लगाता है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) पर 1500 करोड़ रुपए का जुर्माना लग सकता है तो आज का माहौल तो बिगड़ ही गया। सेंसेक्स में सबसे ज्यादा 11.61 फीसदी और निफ्टी में 9.49 फीसदी भार रखने के कारण आरआईएल अपने साथ बाजार को भी नीचे खींच ले जाएगा। जुर्माने की हद ईटी ने सूत्रों के हवाले 25 करोड़ रुपए से 1500 करोड़ रुपए बताई है। कमाल है, पहली बार बता चला कि सूत्र किसी सूत को इतना ज्यादा खींचकर तान सकते हैं? ऐसे में आज ज्यादा कुछ नहीं, बस दो फुटकर-फुटकर सूचनाएं देकर काम चला रहा हूं।

पहली सूचना, लॉयड स्टील इंडस्ट्रीज (बीएसई – 500254, एनएसई – LLOYDSTEEL) यूं तो गैताल कंपनी है। घाटे में है, बुक वैल्यू तक ऋणात्मक हो चुकी है। लेकिन उत्तम गल्वा स्टील इसका अधिग्रहण करने जा रही है। शुक्रवार को यह शेयर 10.36 फीसदी की बढ़त लेकर 18.65 रुपए पर बंद हुआ है। कहा जा रहा है कि यह स्टॉक बहुत तेजी से बढ़कर 30 रुपए तक पहुंच सकता है। यह बी ग्रुप का शेयर है और इसमें सर्किट लिमिट 20 फीसदी की है। हो सकता है कि गिरते बाजार में भी इसमें चमक बनी रहे।

दूसरी सूचना है त्रिवेणी ग्लास (बीएसई – 502281) के बारे में। यह एनएसई में लिस्टेड नहीं है। इसके बारे में जब हमने अगस्त में लिखा था, तब यह 15-16 रुपए के आसपास डोल रहा था। छह महीने में बढ़ने के बजाय यह घटकर 12.05 रुपए पर आ चुका है। लेकिन शायद अब इसमें बढ़त हो जाए। कंपनी ने शुक्रवार को बाजार बंद होने के बाद बीएसई को आधिकारिक तौर पर सूचित किया है कि उसे इलाहाबाद के संयंत्र व सुविधाओं को बेचने की इजाजत बीआईएफआर (बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशिल रीकंस्ट्रक्शन) से मिल गई है। बीआईएफआर ने इस काम के लिए आईडीबीआई को ऑपरेटिंग एजेंसी नियुक्त किया है।

त्रिवेणी ग्लास घाटे में तो नहीं है। लेकिन उस पर कर्ज का भारी बोझ है। कंपनी को जहां बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के कर्ज लौटाने हैं, वहीं उसे मजदूरों व क्रेडिट पर माल देनेवालों का भी हिसाब-किताब साफ करना है। नोट करने की बात यह है कि इसमें एसेट रीकंट्रक्शन कंपनी आरसिल ने 31 फीसदी हिस्सेदारी ले रखी है। लेकिन आरसिल तभी यह हिस्सेदारी किसी और को बेच सकती है, जब प्रवर्तक खरीदने से इनकार कर दें। बैलेंस शीट के मुताबिक कंपनी पर बकाया कर्ज 36 करोड़ रुपए का है, जबकि उसे इलाहाबाद की फैक्टरी बेचने पर 90 करोड़ से लेकर 125 करोड़ रुपए मिल सकते हैं।

इस बीच ग्लास उद्योग बेहतर कामकाज कर रहा है। इसे हम असाही ग्लास, पिरामल ग्लास और सेंट गोबैन के शानदार नतीजों से देख सकते हैं। जानकार मानते हैं कि त्रिवेणी ग्लास के प्रवर्तक जे के अग्रवाल इसी माहौल का फायदा उठाकर पुरानी आस्तियां बेचकर कंपनी में नई जान डालने की कोशिश में हैं। उनके मुताबिक इस शेयर पर दांव फिलहाल लगाया जा सकता है। लेकिन हम फिर बता दें कि किसी के कहे में आकर निवेश न करें। खुद पूरी दरियाफ्त कर लेने और तसल्ली हो जाने के बाद ही अपनी गाढ़ी बचत शेयर बाजार में लगाएं।

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