हर लिस्टेड कंपनी की वेबसाइट एकदम चौकस और अपडेट होनी चाहिए। नए वित्त वर्ष 2011-12 के पहले दिन यानी 1 अप्रैल 2011 से पूंजी बाजार नियामक संस्था ने इसे अनिवार्य नियम बना दिया है। इसके लिए बाकायदा लिस्टिंग समझौते में संशोधन किया गया है। हालांकि अभी तक स्थिति यह है कि बहुत सारी कंपनियों ने कई सालों से अपनी वेबसाइट पर दी गई सूचनाओं को अद्यतन नहीं किया है। इससे निवेशकों को कंपनी के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती।
कंपनी की वेबसाइट पर उसकी बिजनेस और वित्तीय स्थिति का पूरा विवरण होना चाहिए। उसमें शेयरधारिता के पैटर्न से लेकर कॉरपोरेट गवर्नेंस व संपर्क की जानकारी से लेकर यह भी बताया जाना चाहिए कि उसने मीडिया कंपनियों के साथ कोई करार कर रखा है या नहीं।
सेबी के मुताबिक अगर कंपनी इस संबंध में उसके नियमों का पालन नहीं करेगी तो स्टॉक एक्सचेंजों से डी-लिस्ट तक किया जा सकता है, जिसका मतलब होगा कि वह पूंजी बाजार से आगे धन नहीं जुटा सकेगी। सेबी का कहना है कि इस कदम का मकसद लिस्टेड कंपनियों के बारे में सभी बुनियादी जानकारियों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
forget updating of website, many companies do not have even websites at all. Baffin Engineering Products Ltd for example does not have any website at all. There must be many such hundreds of companies over which there is no control of any agency.
Next having website is no guarantee of “no financial jugglery”, Satyam’s is the best example.
Website no doubt should be not only made mandatory, but website-information should be subject to scrutiny by regulators (for which anti-corruption bill supported by Anna Hazare should be passed) including public as also shareholders.