कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार द्वारा लाए गए सिंगूर भूमि पुनर्वास व विकास अधिनियम को बुधवार को पूरी तरह संवैधानिक व वैध करार दिया। इस फैसले का असर यह होगा कि टाटा मोटर्स को नैनो कार परियोजना के लिए किसानों से ली गई जमीन उन्हें वापस लौटानी होगी। हालांकि कोर्ट के इस फैसले का टाटा मोटर्स के शेयरों पर खास असर नहीं पड़ा और वे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में थोड़ा सा बढ़कर 155.95 रुपए पर बद हुए।
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि यह कानून संवैधानिक है। न्यायमूर्ति इंद्र प्रसन्न मुखर्जी ने कहा कि यह विधेयक संविधान के प्रावधान के तहत बनाया गया है। बता दें कि टाटा मोटर्स ने हाईकोर्ट में इस अधिनियम की वैधता को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति मुखर्जी ने यह भी कहा कि उनका आदेश 2 नवम्बर से प्रभावी हो सकता है क्योंकि इस आदेश के खिलाफ अदालत की बृहद खंडपीठ में अपील करने का टाटा मोटर्स को एक अवसर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 23 और 24 के तहत टाटा मोटर्स मुआवजा ले सकती है। अदालत ने हुगली जिला न्यायाधीश को इस मामले को निपटाने के लिए छह महीने का समय दिया।
टाटा मोटर्स ने तीन महीने पहले 21 जून को हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके राज्य सरकार के 997.11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने पर रोक लगाने की मांग की थी। साल 2006 में वाममोर्चा सरकार ने टाटा मोटर्स को यह जमीन नैनो कार परियोजना लगाने के लिए लीज पर दी थी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगूर भूमि कानून पर आए कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। इसे ‘अवाम की जीत’ बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे किसानों को भूमि लौटाने का मार्ग प्रशस्त होगा। बनर्जी ने कहा, “यह न केवल सिंगूर या देश, बल्कि पूरी दुनिया के लिए ऐतिहासिक अवसर है। सिंगूर आंदोलन हमेशा दुनिया के लिए लोगों के संघर्ष और उनकी जीत का उदाहरण बना रहेगा।”
उन्होंने कहा कि इससे किसानों को वह जमीन लौटाने की राह खुल गई है, जिसकी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। बाकी 600 एकड़ भूमि पर औद्योगिक इकाइयां स्थापित की जाएंगी। दूसरी तरफ टाटा मोटर्स ने एक आधिकारिक बयान में कहा है, “सिंगूर भूमि पुनर्वास व विकास अधिनियम 2011 पर हमने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के बारे में सुना है। कम्पनी फैसले का अध्ययन करेगी और फिर अगले कदम के बारे में निर्णय लेगी।”
आपको याद होगा कि टाटा मोटर्स को अक्टूबर 2008 में किसानों के जबरदस्त प्रदर्शन के कारण इस परियोजना को बंद करना पड़ा था। इस विधेयक को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम सुनवाई 15 जुलाई को न्यायमूर्ति सौमित्न पाल की पीठ के समक्ष शुरू हुई थी। न्यायमूर्ति पाल के निजी कारणों से इस मामले को छोड़ने के बाद 26 जुलाई को इस मामले की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति मुखर्जी को नियुक्त किया गया था।