अपनी ज़िंदगी हमें काफी कुछ समझ में आती है। उसकी आर्थिक स्थिति भी बखूबी समझ में आती है क्योंकि उसे हम अपनी ज़मीन, अपने धरातल पर खड़े होकर देखते हैं। पर, कोई देश की अर्थव्यवस्था की बात करे तो सब कुछ सिर के ऊपर से गुज़र जाता है क्योंकि हम उसे आसमां से देखते हैं। अगर हम उसे भी अपनी ज़मीन से खड़े होकर देखें तो शायद सब कुछ अपनी ज़िंदगी की तरह साफ-साफ दिखने लगेगा। यहऔरऔर भी

दिसंबर महीने के दूसरे पखवाड़े में आम लोगों के लिए ऐसे सरकारी बांड जारी कर दिए जाएंगे जिसमें बचत को महंगाई की मार से सुरक्षित रखा जा सकता है। इन बांडों का नाम है इनफ्लेशन इंडेक्स्ड नेशनल सेविंग्स सिक्यूरिटीज – क्यूमुलेटिव (आईआईएसएस-सी)। इन्हें रिजर्व बैंक केंद्र सरकार से सलाह-मशविरे के बाद लांच कर रहा है। शुक्रवार को रिजर्व बैंक ने आधिकारिक जानकारी दी कि इन्हें दिसंबर माह के दूसरे हिस्से में पेश कर दिया जाएगा। बता देंऔरऔर भी

बजट का शोर थम चुका है। विदेशी निवेशकों को जो सफाई वित्त मंत्री से चाहिए थी, वे उसे पा चुके हैं। अब शांत हैं। निश्चिंत हैं। बाकी, अर्थशास्त्रियों का ढोल-मजीरा तो बजता ही रहेगा। वे संदेह करते रहेंगे और चालू खाते का घाटा, राजकोषीय घाटा, सब्सिडी, सरकार की उधारी, ब्याज दर, मुद्रास्फीति जैसे शब्दों को बार-बार फेटते रहेंगे। उनकी खास परेशानी यह है कि धीमे आर्थिक विकास के दौर में वित्त मंत्री जीडीपी के आंकड़े को 13.4औरऔर भी

जिस देश के खज़ाना मंत्री को यह न पता हो कि उसके 125 करोड़ निवासियों में से कितने करोड़पति हैं और वो इसके लिए अमीरों की सत्यवादिता पर भरोसा करता हो, उस देश के खज़ाने का भगवान ही मालिक है और तय है कि कर्ज पर उस देश की निर्भरता बढ़ती चली जानी है। दूसरे शब्दों में उसका राजकोषीय घाटा बढ़ते ही जाना है। फिर भी हमारे वित्त मंत्री या खज़ाना मंत्री पी चिदंबरम दावा करते हैंऔरऔर भी

नए साल के बजट में तमाम टैक्सों में घटबढ़ हो सकती है। टैक्स का आधार बढ़ाने की कोशिश भी हो सकती है। लेकिन एक बात तय है कि वित्त मंत्री पलनियप्पन चिदंबरम किसानों या कृषि आय पर कोई टैक्स नहीं लगाएंगे। वैसे, बीजेपी की तरफ से अगर यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री बने होते तो वे भी यह जोखिम नहीं उठाते। फिर भी टैक्स आधार बढ़ाने की बड़ी-बड़ी बातों से कोई भी वित्त मंत्री बाज़ नहीं आता। दिक्कतऔरऔर भी

आज के जमाने में सच्ची देशभक्ति का मतलब है उन लोगों को बेनकाब करना जो राष्ट्र की संपदा की निजी लूट में शामिल हैं। वे राष्ट्रद्रोही हैं जो जनता से मिले टैक्स या राष्ट्र के नाम पर लिए गए कर्ज का अपव्यय कर दलालों की तिजोरी भर रहे हैं।और भीऔर भी

एक तरफ ब्रिटिश कंपनी, वोडाफोन पांच साल पहले भारत में किए गए अधिग्रहण पर 11,000 करोड़ रुपए का टैक्स देने से बचने के लिए दुनिया भर में लॉबीइंग करवा रही है, वैश्विक व्यापार व उद्योग संगठनों से बयान दिलवा रही है, दूसरी तरफ भारत सरकार उस पर टैक्स लगाने के अपने इरादे पर डटी है। इस साल के बजट में वित्त मंत्री ने आयकर कानून में पिछली तारीख से लागू होनेवाला ऐसा संशोधन किया है जिससे भारतऔरऔर भी

चुनाव न होते तो बजट का रहस्य 16 दिन पहले ही खुल जाता। चलिए, इससे वित्त मंत्री और उनके अमले को अपने प्रस्तावों को ठोंक-बजाकर दुरुस्त करने के लिए ज्यादा वक्त मिल गया। लेकिन हम तो उन्हीं के भरोसे हैं तो हमें क्या वक्त मिलना और क्या न मिलना! इतना तय है कि बजट की एक-एक लाइन किसी न किसी रूप में कंपनियों के धंधे पर असर डालती है और इसका सीधा असर उनके शेयरों पर पड़ेगा।औरऔर भी

इस समय देश में व्यक्तिगत आयकर देनेवाले लोग कुल तीन करोड़ हैं। इनमें से 2.02 करोड़ की सालाना आय दो लाख रुपए तक है। 56.73 लाख लोगों की सालाना आय दो से चार लाख रुपए है। चार से दस लाख रुपए तक सालाना आय के करदाता 36.07 लाख हैं। दस से बीस लाख कमानेवालों की संख्या 3.35 लाख है। साल में 20 लाख रुपए से ज्यादा कमानेवालों की संख्या केवल 1.85 लाख है। इन्होंने बीते वित्त वर्षऔरऔर भी