ग्लोबल होती जा रही दुनिया में देश की मुद्रा का कमज़ोर होना कोई बुरी बात नहीं, बशर्ते वो देश आयात से ज्यादा निर्यात करता हो। लेकिन रुपए का कमज़ोर होते जाना भारत के लिए कतई अच्छा नहीं है क्योंकि हमारा निर्यात सीमित है और हम कहीं ज्यादा आयात करते हैं। यह उन भारतीय परिवारों के लिए भी बुरा है जो अपने बच्चों को अमेरिका या यूरोप पढ़ने के लिए भेजते हैं। डॉलर की तो बात ही छोड़िए,औरऔर भी

बाज़ी हाथ से सरकती जा रही है। सामाजिक नीति व अर्थनीति ही नहीं, राजनीति तक में। दस साल तक देश में जिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तूती बोलती थी, आज जब वे पोलैंड और यूक्रेन के दौरे से वापस देश लौटते हैं तो गिनती के दो अधिकारी उन्हें रिसीव करने पहुंचते हैं। अफसरशाही में लैटेरल एंट्री का फैसला लेते हैं, लेकिन अंदर-बाहर के दवाब में उन्हें चंद दिनों में ही वापस लेना पड़ता है। यूट्यूबर को रोकनेऔरऔर भी

समाचार एजेंसी रॉयटर्स की मानें तो भारत में सालाना ₹30 लाख से ज्यादा कमानेवाले अमीर परिवारों की संख्या वित्त वर्ष 2020-21 के 1.07 करोड़ से 2030-31 तक बढ़कर 3.5 करोड़ हो सकती है। दूसरी तरफ साल में ₹1.25 लाख से भी कम कमानेवाले गरीब परिवारों की संख्या वित्त वर्ष 2020-21 के 4.52 करोड़ से घटते-घटते 2030-31 में 1.99 करोड़ और 2046-47 तक मात्र 72 लाख पर आ सकती है। तब देश के ज्यादातर गरीब परिवार ग्रामीण इलाकोंऔरऔर भी

भारत का मध्य वर्ग पिछले दस साल से मोदी सरकार और भाजपा का समर्थक रहा है क्योंकि उसे लगता था कि वो आर्थिक विकास को गति देकर रोज़ी-रोज़गार व समृद्धि के अवसर पैदा करेगी। लेकिन अब उसे लगने लगा है कि मोदी सरकार इसके बजाय अपने मुठ्ठी भर यारों पर देश के संसाधन लुटा रही है, जबकि मध्य वर्ग की हालत खस्ता है और उसे अपनी गाढ़ी कमाई पर लगातार ज्यादा से ज्यादा टैक्स देना पड़ रहाऔरऔर भी

उपभोक्ता साजोसामान बनानेवाली विदेशी कंपनियां और फाइनेंस के खेल से जमकर कमाने की चाह में लगे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक दशकों से भारत पर फिदा हैं क्योंकि यहां का मध्य वर्ग उन्हें कई देशों से बड़ा बाज़ार नज़र आता है। भारत सरकार के पास अभी तक इसकी कोई गणना नहीं है कि देश के मध्य वर्ग का आकार कितना है। लेकिन विदेशी संस्थाओं के मुताबिक यह हमारी 144 करोड़ की आबादी का लगभग 30% यानी 43.20 करोड़ केऔरऔर भी

सरकार का खज़ाना टैक्स से लबालब भरा है और भरता ही जा रहा है। ऊपर से वो जितना चाहे, देश के नाम पर बाज़ार से ऋण उठा सकती है, जिसे वो नहीं, आनेवाली पीढ़ियां चुकाएंगी। इस बीच शेयर बाज़ार बम-बम करता जा रहा है तो सरकार निश्चिंत भाव से अपने मित्रों के लिए पुराने मंत्रियों के दम पर पुरानी नीतियां ही चलाए जा रही है। देश के 81.35 करोड़ गरीब महीने का मुफ्त पांच किलो अनाज पाकरऔरऔर भी

एक काम, जिसमें इस सरकार का कोई जोड़ नहीं, जिसमें उसने रिकॉर्ड बना दिया है, वो है टैक्स वसूली। इतना बेहताशा टैक्स आज तक आजाद भारत की किसी सरकार ने नहीं वसूला। पिछले कई सालों से व्यक्तिगत इनकम टैक्स से वसूली जा रही रकम कॉरपोरेट टैक्स से ज्यादा चल रही है। बीते वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स से ₹9,11,055 करोड़ हासिल किए, जबकि इनकम टैक्स से वसूली गई रकम ₹10,44,726 करोड़ रही। इससे सालऔरऔर भी

देश जिसे सुनते-सुनते पक गया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार फिर लालकिले की प्राचीर वही विकसित भारत का राग अलापा। एक बात नई थी कि उन्होंने कहा कि विकसित भारत के लिए हर किसी की राय ली जा रही है। लेकिन जो-जो राय उन्होंने गिनाई, उनमें कहीं से भी यह राय नहीं थी कि विकसित भारत के लिए करोड़ों बेरोज़गारों को अच्छा-खासा काम देने की ज़रूरत है। उसमें यह भी नहीं था कि करोड़ों किसानोंऔरऔर भी

फिर लालकिले की प्राचीर से साफा पहनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण, लगातार 11वीं बार। ऐसे में 78वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व बेला पर हिसाब लगाना ज़रूरी है कि मोदी सरकार के अब तक के दस साल में देश को क्या मिला? क्या उन्होंने देश को अब तक केवल टोपी पहनाने का ही काम किया है? विकसित भारत के सपने देखना हर देशवासी का जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन ऐसे ही सपने दिखाकर दस साल से बराबर छलेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में पारदर्शिता न हो, दस शेयर से लेकर दस करोड़ शेयरों तक के सौदे करनेवालों में समानता न हो, सबकी न सुनी जाए तो रिटेल निवेशक व ट्रेडर बड़े मगरमच्छों का निवाला बन जाते हैं। ऐसा न हो, इसे सुनिश्चित करने का काम पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी का है। वह ऊपर-ऊपर दिखाती भी यही है। लेकिन पता चला है कि अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों को जिन ऑफशोर फंडों के ज़रिए जबरन चढ़ायाऔरऔर भी