शेयर बाज़ार में पारदर्शिता न हो, दस शेयर से लेकर दस करोड़ शेयरों तक के सौदे करनेवालों में समानता न हो, सबकी न सुनी जाए तो रिटेल निवेशक व ट्रेडर बड़े मगरमच्छों का निवाला बन जाते हैं। ऐसा न हो, इसे सुनिश्चित करने का काम पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी का है। वह ऊपर-ऊपर दिखाती भी यही है। लेकिन पता चला है कि अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों को जिन ऑफशोर फंडों के ज़रिए जबरन चढ़ाया गया, उनमें सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने छोटा-मोटा नहीं, बल्कि 8.7 लाख डॉलर (7.31 करोड़ रुपए) का निवेश कर रखा है। ऐसे में सेबी से किस निष्पक्षता की उम्मीद कर सकते हैं। दिक्कत यह है कि खुद केंद्र सरकार व भाजपा माधबी पुरी बुच को बचा रही है। समस्या यह भी है कि सरकार किसी भी अन्य मामले में कोई आलोचना सुनने को तैयार नहीं। कुछ दिनों पहले जाने-माने स्वतंत्र बैंकिंग एनालिस्ट हेमिंद्रा हज़ारी ने कहा था कि मौजूदा माहौल में किसी भी तरह की अहम रिसर्च करना बेहद मुश्किल हो गया है। कंपनियों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ नकारात्मक लिख दो तो वे संस्थागत ग्राहकों से लेकर बड़े मंचों तक से आपको काट देते हैं। कोई कह दे कि मोदी के अमृतकाल में सब कुछ अच्छा नहीं है तो उसका जीना हराम कर दिया जाता है। यह न तो देश के लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही शेयर बाज़ार के लिए। अब बुधवार की बुद्धि…
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